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________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) १५७ धूल में कहीं नहीं है। इस भंगार के कारण निवृत्ति नहीं मिलती। ए...ई... ! मनसुखभाई! वह फिर निवृत्त हो तो किसी दिन थोड़ा पढ़ता हो परन्तु उसमें इस रीति की समझ, समझ में नहीं आती। यह तो उसकी योग्यता ऐसी हो, तब ही समझ में आती है। यहाँ तो मोक्खह कारण – ऐसा कहा, भाई! आहा...हा... ! इन वीतराग परमात्मा और तेरे भाव में. दोनों में अन्तर मत डाल, यही मोक्ष का कारण है। (अन्तर मत डाल) तो मोक्ष का कारण है। अन्तर डाले कि मैं राग का कर्ता और मैं कर्मवाला और रागवाला और यह वाला.... अन्तर पड़ा यह मोक्ष का कारण, साधन नहीं है। यह बन्धन का साधन है। आहा...हा...! निश्चय से - निश्चय से अर्थात् सत्य से ऐसा जान। वास्तव में सत्य ऐसा ही है। भगवान आत्मा ज्ञाता-दृष्टा है। जैसे विकल्प का कर्ता वीतराग नहीं, वैसे यह भी कर्ता नहीं। वे सिद्धभगवान निमित्त को मिलाते नहीं, छोड़ते नहीं; जानते हैं। ऐसे मैं भी निमित्त को मिलाऊँ या छो', यह मुझमें नहीं है। मैं तो जानने देखनेवाला हूँ। ऐसे जानने -देखनेवाले को सर्वज्ञ परमात्मा जैसा जानने से वही मोक्ष का कारण होता है। आहा...हा...! ___ अब ऐसी बात स्पष्ट की है परन्तु.... आहा...हा...! अरे...! अनन्त काल से भूला, भाई! आहा...हा...! और भूल को मिटाने का अवसर आया, वहाँ ऊँ...ऊँ... करके बैठा कि यह नहीं, ऐसा नहीं। अरे...! ठीक बापू! भाई! (तेरी भूल) तुझे रोकती है, भाई! समझ में आया? ऐसे अवसर में यह अवसर जाता है, हाँ! यह अवसर जाने के बाद अनाज जम जायेगा, और फिर तुझे नहीं भायेगा। आहा...हा... ! समझ में आया? भगवान आत्मा और परमात्मा में कुछ अन्तर नहीं है। उनकी नाथ और जात का मैं हूँ। समझ में आया? आनन्दघनजी ने कहा है न धर्म में?'धर्म जिनेश्वर गाऊँ रंगसूं, भंगमां पड़सू रे, प्रीत जिनेश्वर.... बीजो मनमन्दिर आणूं नहीं, ऐ एम कुलवट रीत जिनेश्वर... धर्म जिनेश्वर गाऊँ रंगसूं.... धर्म जिनेश्वर शरण गया पछी, कोई न बाँधे कर्म जिनेश्वर, धर्म जिनेश्वर गाऊँ रंग सूं...' आनन्दघनजी हो गये हैं, शान्तिभाई ! सुना है कहीं? व्यापार के कारण कुछ भी फुरसत कहाँ है ? भगवान आत्मा.... ! ऐसा कहते हैं, नाथ! धर्म जिनेश्वर गाऊँ.... धर्म जिनेश्वर मैं
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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