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गाथा-१९
समझ में आता है ? एक श्वासोच्छ्वास में अठारह भव। आहा...हा...! समझ में आया? एक श्वासोच्छ्वास में। आहा...हा...!
कहते हैं, जिसे राग और विकार का प्रेम है, उसका स्मरण है, उसका चिन्तवन है, उसका जिसे ध्यान है, वह तो क्रम-क्रम से कदाचित् त्रस में आया हो, परन्तु जहाँ विशेष एकाग्रता की चीज है, वहाँ वह निगोद में जाएगा। समझ में आया? यह जिनेन्द्र के स्मरणवाला, भगवान आत्मा अमृत अतीन्द्रियस्वरूप, मेरा स्वरूप ही त्रिकाल वीतराग है - उसके स्मरणवाला, चिन्तवनवाला, ध्यानवाला (परम पद पायेगा) । ध्यान रखना।
उसका स्मरण करने से एक क्षण में परमपद प्राप्त हो जाता है। अज्ञानी को राग के ध्यान में त्रस की स्थिति पूरी हो जाएगी और एकेन्द्रिय में जाएगा, वहाँ अनन्त काल पड़ा रहेगा। इस बन्धन के फल की उत्कृष्टदशा, निगोददशा है। रतिभाई ! समझ में आया? बड़ी जेल! आत्मा गुलाँट खाता है। अरे...! आत्मा! तू परमानन्द (स्वरूप) है न, और इस परिभ्रमण के पन्थ में कहाँ गया? तुझमें परिभ्रमण के पन्थ का अभाव करने की ताकत है - ऐसा तू आत्मा है। परमात्मा ने उसका (परिभ्रमण का) अभाव किया है। परमात्मा ने - अरहन्त ने भव का अभाव किया है। इस आत्मा के भव का अभाव करने की ताकतवाला, वह ही मैं आत्मा हँ। समझ में आया? बात भी ऐसी क्या (है)!
उसे एक क्षण में परमपद प्राप्त.... (हो जाता है)। देखो! आहा...हा... ! पहले तो ध्यान करते जो अल्प काल रहे श्रावकदशा में: मनिदशा में रहे तो अतीन्द्रिय आनन्द की प्राप्ति होवे। थोड़े अतीन्द्रिय आनन्द की (प्राप्ति होवे)। चौथे गुणस्थान में सम्यग्दर्शन में भी अन्तर के ध्यान में क्षणभर भी रहे तो भी उसे जिनेन्द्र वीतराग परमेश्वर स्वयं, उसमें से उसे आनन्द की धारा बहे। आगे बढ़ते हुए स्थिर होवे तो विशेष आनन्द श्रावक की दशा में हो। आगे होवे तो मुनिदशा में विशेष आनन्द हो और पूर्ण लीन हो जाए (तो) पूर्ण अतीन्द्रिय आनन्द की परमात्मदशा प्राप्त होती है। समझ में आया? आहा...हा...! एक क्षण में पाँच करोड़ रुपये मिले हो.... एक करोड़ का बँगला एक क्षण में बनाना हो तो बना सकते हैं ? हैं ? यह एक क्षण में केवलज्ञान का बँगला प्रगट करे – ऐसा आत्मा तैयार है। समझ में आया? हैं?