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________________ १४२ गाथा-१९ बीस वर्ष का लड़का ऐसे दो वर्ष के विवाह उपरान्त मर गया हो तो फिर उसकी माँ ऐसी रोती है.... ए.... पुत्र! तू कहाँ गया? एक माँ तो उसकी पीछे मर गयी। छह महीने के विवाह उपरान्त लड़की मर गयी। गृहस्थ मनुष्य दस लाख रुपये के आसामी, उसकी माँ छह महीने के (विवाह के बाद) वह मर गया तो रो-रो कर मर गयी। परे दिन याद करे. उसका पति कहे परन्तु किसलिए (रोती हो)? अब गया, पैसा है, खाने का साधन है और अपने दूसरा लड़का है परन्तु वह दरवाजा बन्द करके अन्दर पलंग पर रोती ही रहे। जो कोई देखने जाये तो फफक-फफक कर रोती रहे, उसे याद करे, ऐसा मेरा कहना है। उसे याद करे उसका नाम स्मरण। उसकी होली लगाई। यह भगवान चिदानन्द प्रभु समीप में विराजमान हैं और आनन्द का कन्द प्रभु, उसका स्मरण कर न बारम्बार! वह पुत्र का स्मरण करने से आवे ऐसा है ? इसका स्मरण करने से प्रगट हो – ऐसा है? प्रवीणभाई ! हैं ? यह तो सब भाव भाई अन्दर बहुत भरे होते हैं। थोड़े-थोड़ आते हैं । यह तो आचार्यों के शब्द हैं न? एकदम मार्मिक हैं न? वीतरागभाव को याद कर – ऐसा कहते हैं । लो ! दूसरी लाईन । यह अन्दर राग और पुण्यभावना आवे, उसे याद मत कर, लक्ष्य में से छोड़ दे; वे याद करने योग्य नहीं हैं। जहर को याद करने जैसा नहीं है। पुण्य-पाप के भाव याद करने योग्य नहीं हैं। आहा...हा...! भगवान आत्मा पवित्र का धाम प्रभु याद करने योग्य है, स्मरण करने योग्य है। उसका स्मरण तुझे दुःख का कारण है। समझ में आया? चिन्तवन करो.... दूसरा शब्द है, वह आयेगा। (श्रोता : प्रमाण वचन गुरुदेव!) www
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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