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________________ १० गाथा-१ ही मैं आदर करता हूँ - ऐसा कहकर पहली गाथा में महा-माङ्गलिक किया है। अपन ने शुरुआत यहाँ की और... प्रकृतिक कहाँ का मैल है ! है ? ऐई...! हरिभाई ! कहाँ का कहाँ आकर पड़ा? अब कभी यह सवा तीस वर्ष में पहले वांचा जाता है। मुमुक्षु : यह मकान भी पहला हुआ, यहाँ तो बड़ा गड्ढा था। उत्तर : हाँ, वे ठीक कहते हैं, यह तो खड्ढा था, वहाँ गहराई करिये - ऐसा कहते हैं। ऐसे जिसकी पर्याय में अनादि का गड्ढा है, अज्ञान में, मिथ्याभ्रम में, मैं रागी और द्वेषी का बड़ा गड्ढा है, छोड़ गड्ढा, कहते हैं । अन्दर सिद्ध का बँगला था, समझ में आया? __ मैं सच्चिदानन्दप्रभु सर्वज्ञ त्रिलोकनाथ परमेश्वर ने ऐसा कहा। परमेश्वर के मुख में ऐसा आया कि तू सिद्ध समान, तुझे मैं देखता हूँ न ! केवलज्ञानी परमात्मा ने उनकी वाणी में इन्द्रों की उपस्थिति में समवसरण की सभा में बड़े इन्द्र, लोक के, अर्धलोक के स्वामी... समझ में आया? दक्षिणेन्द्र के स्वामी सौधर्म इन्द्र, उत्तर के स्वामी ईशान इन्द्र, ऐसे इन्द्रों की उपस्थिति में भगवान फरमाते हैं, भाई! हम तुझे सिद्ध समान देखते हैं न? तू देखना सीख न! कहो, चन्द्रकान्तभाई! यह किस प्रकार की (बात है)? इसमें धर्म क्या होगा? आत्मा परमानन्द की पर्याय जो प्राप्त हुई, उसका भरोसा किया, उपाय का भरोसा किया, उस शक्ति में था, वह प्रगट हुआ, उस शक्ति का भरोसा किया और उसमें नमन किया अर्थात अन्दर स्वरूप की ओर का अन्तर विनय और आदर किया है। समझ में आया? उसे माङ्गलिक कहते हैं । देखो न ! सिद्धसमान अपने स्वरूप को ध्याकर - ऐसा आता है न? 'समयसार' पहली गाथा में। सिद्ध भगवान, वे प्रतिछन्द के स्थान पर है, ऐसा आता है न? प्रतिछन्द नहीं? हे भगवान! आप सिद्ध हो, ऐसा बोले । बड़ा मकान होता है न? पाँच लाख, दस लाख, करोड़, दो करोड़ का, उसमें आवाज सामने आती है, लो! हे भगवान ! तुम सिद्ध हो, ऐसी सामने (आवाज / प्रतिध्वनि) लो। यहाँ बोले, हे प्रभु! तुम पूर्ण हो । ऐसा बोले वहाँ आवाज ऐसी आती है हे प्रभु! तू पूर्ण हो - ऐसा आता है। समझ में आया? होता है न बड़ा मकान? करोड़ों, दो-दो करोड़ और पाँच-पाँच करोड़ के मकान है? प्रतिध्वनि पड़े, नहीं वह मैसूर का मकान, देखने गये थे? बड़ा नहीं? तीन करोड़ का।
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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