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ॐ
॥ नमः सिद्धेभ्यः ॥
योगसार प्रवचन
(भाग एक)
पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी के योगसार पर हुए धारावाहिक प्रवचन
सिद्धों को नमस्कार णिम्मलझाण परिट्ठया कम्मकलंक डहेवि । अप्पा लद्धउ जेण परु ते परमप्प णवेवि ॥ १ ॥ निर्मल ध्यानारूढ़ हो, कर्म कलंक नशाय । हुये सिद्ध परमात्मा, वन्द हूँ जिनराय ॥
अन्वयार्थ - ( जेण ) जिन्होंने ( णिम्मलझाण परिट्ठिया) शुद्ध ध्यान में स्थित होते हुए (कम्मकलंक डहेवि ) कर्मों के मल को जला डाला है (परुअप्पा लद्धउ ) तथा उत्कृष्ट परमात्म पद को पा लिया है, (ते परमप्प णवेवि) उन सिद्ध परमात्माओं को नमस्कार करता हूँ।