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________________ (२३) चलता। हस्तक्षेप की भावना ही आक्रमण को प्रोत्साहित करती है । यदि हम अपने मन से पर में हस्तक्षेप करने की भावना निकाल दें तो फिर हमारे मानस में सहज ही अनाक्रमण का भाव जाग जायगा । आक्रमण प्रत्याक्रमण को जन्म देता है, यह आक्रमणप्रत्याक्रमण की स्थिति एक ऐसे युद्ध को प्रोत्साहित कर सकती है जिससे मात्र विश्वशान्ति ही खतरे में न पड़ जाय, अपितु विश्वप्रलय की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अतः विश्व-शान्ति की कामना करने वालों को तीर्थंकर महावीर द्वारा बताये गये अहस्तक्षेप, अनाक्रमण, और सह-अस्तित्व के मार्ग पर चलना आवश्यक है। इसमें ही सब का हित निहित है। उन्होंने व्यक्ति-स्वातंत्र्य और विचारों की स्वतंत्रता पर सर्वत्र जोर दिया है। वे अपने पीछे अन्धविश्वासियों की भीड़ इकट्ठी कर पोपडम का प्रचार नहीं करना चाहते थे। उन्होंने तो विचारकों को चिन्तन की नई दिशा दी है। उन्होंने स्पष्ट कहा - "जो मैं कहता हूँ, उसे तर्क की कसौटी पर कसकर और अनुभूति से आत्मसात् करके ही स्वीकार करो, अन्यथा यह सत्य तुम्हारा न बन पायेगा | आगम-प्रमाणरूप चाबुक की मार से, तर्कों के प्रबल प्रहार से और मेरे अद्भुत व्यक्तित्व के प्रभाव से जो मैंने कहा उसे यदि ऊपर से स्वीकार भी कर लिया तो कोई लाभ नहीं होगा। वह तो एक नये अन्धविश्वास और पोपडम को ही जन्म देगा।" ___ स्वतंत्रता के साथ-साथ समानता का सिद्धान्त भी उन्होंने प्रतिपादित किया । एकता का आधार समानता ही हो सकती है। उन्होंने 'हम एक हैं' का नारा न देकर 'हम सब एकसे हैं' का नारा दिया। 'हम सब एक हैं' में व्यक्ति-स्वातंत्र्य का अभाव हो जाता है,
SR No.009479
Book TitleTirthankar Bhagawan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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