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________________ (१४) मानवों-देवों के साथ-साथ पशुओं के बैठने की भी व्यवस्था थी और बहुत से पशुगण भी शान्तिपूर्वक धर्म श्रवण करते थे। सर्वप्राणी-समभाव जैसा महावीर की धर्मसभा में प्राप्त था; वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। महावीर के धर्मशासन में महिलाओं को सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त था। उनके द्वारा स्थापित चतुर्विध संग में मुनि-संघ और श्रावक-संघ के साथ-साथ आर्यिका-संघ और श्राविका-संघ भी थे। __ अनेक विरोधी विद्वान भी उनके उपदेशों से प्रभावित होकर अपनी परम्पराओं को त्याग उनके शिष्य बने । प्रमुख विरोधी विद्वान इन्द्रभूति गौतम तो उनके प्रमुख शिष्यों में से थे। वे ही उनके प्रथम गणधर बने; जो कि गौतम स्वामी के नाम से प्रसिद्ध हैं। सुधर्म स्वामी आदि और भी उनके गणधर थे। श्रावक शिष्यों में मगध सम्राट महाराजा श्रेणिक (बिम्बसार) प्रमुख थे। लगातार तीस वर्ष तक सारे भारतवर्ष में उनका विहार होता रहा । उनका उपदेश जन-भाषा में होता था। उनके उपदेश को दिव्यध्वनि कहा जाता है। उन्होंने अपनी दिव्यवाणी में पूर्णरूप से आत्मा की स्वतन्त्रता की घोषणा की। ___ उनका कहना था कि प्रत्येक आत्मा स्वतन्त्र है, कोई किसी के आधीन नहीं है। पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त करने का मार्ग स्वावलंबन है। अपने बल पर ही स्वतन्त्रता प्राप्त की जा सकती है। अनन्त सुख और स्वतन्त्रता भीख में प्राप्त होने वाली वस्तु नहीं है, और न उसे दूसरों के बल पर ही प्राप्त किया जा सकता है। सब आत्माएँ स्वतन्त्र भिन्न-भिन्न हैं, एक नहीं; पर वे एक-सी अवश्य हैं; बराबर हैं, कोई छोटी-बड़ी नहीं । अतः उन्होंने कहा - (१) अपने समान दूसरी आत्माओं को जानो।
SR No.009479
Book TitleTirthankar Bhagawan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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