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मैं कौन हूँ? बैठा है कि भोगमय जीवन ही सुखमय जीवन है। भोग सामग्री की उपलब्धि और उसका उपभोग ही सुख है और इनकी अनुपलब्धि ही दुःख है। ___इसकारण वे भोगसामग्री जोड़ने में जी-जान से जुटे रहते हैं। यहाँ तक कि जिस उपभोग के लिए यह सबकुछ किया जा रहा है; उसके लिए भी उनके पास समय नहीं है। न खाने-पीने का ठिकाना और न आराम करने के लिए समय । बस पैसा, पैसा और पैसा। पैसा ही सबकुछ हो गया है; क्योंकि आज भोग सामग्री प्राप्त करने का एकमात्र साधन वही है न?
सोचने की बात यह है कि यह भोग सामग्री सुख की निशानी है या दुःख की ? एक व्यक्ति कहता है कि मैं कभी बीमार नहीं पड़ता; क्योंकि दवाइयों का एक बॉक्स और दो डॉक्टर सदा मेरे साथ रहते हैं। अरे भाई ! ये डॉक्टर और दवाइयों के बॉक्स का सदा साथ रहना सदा बीमार रहने की निशानी है या कभी बीमार न पड़ने की?
वास्तविक स्थिति तो यह है कि जब दाँत थे, तब चना उपलब्ध नहीं थे और जब चना उपलब्ध हुए, तबतक दाँत गायब हो चुके थे। जब पत्थर को भी पचा जाने की शक्ति थी, तब रुखा-सूखा भोजन भी उपलब्ध नहीं था। अब जब ऐसी स्थिति हो गई कि चाहे तो दिनभर घी में डूबे रह सकते हैं, सभी कुछ उपलब्ध है तो मूंग की दाल के पानी पर जीवन चल रहा है। न घी, न नमक, न चीनी - सभी कुछ बन्द है; क्योंकि मधुमेह, रक्तचाप और हृदयरोग सभी कुछ तो हो गया है। इसप्रकार अब तो इच्छानुसार घूमना-फिरना, खाना-पीना, मौजमस्ती करना - सभी कुछ बंद हो गया है।
फिर भी जब-जब सुख-समृद्धि की चर्चा आती है तो यही कहा जाता है कि प्रेम से रहो, मेहनत करो, अधिक अन्न उपजाओ, औद्योगिक
सुख क्या है?
और वैज्ञानिक उन्नति करो - इससे देश में समृद्धि आवेगी और सभी सुखी हो जावेंगे। आदर्शमय बातें कही जाती हैं कि एक दिन वह होगा जब प्रत्येक मानव के पास खाने के लिए पौष्टिक भोजन, पहिनने के लिए ऋतुओं के अनुकूल उत्तम वस्त्र और रहने के लिए वैज्ञानिक सुविधाओं से युक्त आधुनिक बंगला होगा; तब सभी सुखी हो जायेंगे। ___ हम इस पर बहस नहीं करना चाहते हैं कि यह सबकुछ होगा या नहीं; पर हमारा प्रश्न तो यह है कि यह सबकुछ हो जाने पर भी क्या जीवन सुखी हो जावेगा? यदि हाँ, तो जिनके पास यह सबकुछ है; वे तो आज भी सुखी होंगे? या जो देश इस समृद्धि की सीमा को छू रहे हैं; वहाँ तो सभी सुखी और शान्त होंगे? पर देखा यह जा रहा है कि वे सभी भी आकुल-व्याकुल और अशान्त हैं, भयाकुल और चिन्तातुर हैं। ___ अरे भाई ! सबकुछ स्वयं पर घटित करके ही नहीं देखा जाता, कुछ बातें दूसरों को देखकर भी सीख लेना चाहिए। क्या आप कालकूट जहर को भी चखकर देखते हैं, उसकी मारक क्षमता को परखने के लिए उसे खाते हैं ?
नहीं, तो फिर अधिकाधिक भोग सामग्री की उपलब्धि से हम सुखी होंगे या नहीं? - इस बात का निर्णय भी भोगसामग्री के ढेर पर बैठे लोगों को देखकर ही कर लेना चाहिए; क्योंकि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि हम इस जीवन में उतनी भोग सामग्री जोड़ ही लेंगे, जितनी जुड़ जाने पर हम सुखी होने की कल्पना करते हैं।
इसप्रकार इस भव में तो हम यह भी न जान सकेंगे कि भोग-सामग्री में सुख है या नहीं ?
मानव और पशुओं में मात्र इतना ही तो अन्तर है कि पशुओं को अपने पूर्वजों से कुछ भी सीखने को नहीं मिलता, पर मनुष्यों के पास पूर्वजों के अनुभव का भंडार उपलब्ध है। यदि हम सबकुछ अपने पर