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________________ | शाकाहार भी रहते हैं। इसकारण भी उनके खाने का निषेध है। __ जैनाचार में पाँच प्रकार के अभक्ष्य बताये गये हैं - त्रसघातमूलक, बहुधातमूलक, नशाकारक, अनुपसेव्य एवं अनिष्ट। जिनमें त्रसजीवों का घात होता है, ऐसे मांसादि त्रसघातमूलक अभक्ष्य हैं। जिनमें बहुत से स्थावर जीवों का घात होता है, ऐसे जमीकन्द आदि बहुधातमूलक अभक्ष्य हैं। जो नशा उत्पन्न करते हैं, ऐसे मद्यादि पदार्थ नशाकारक अभक्ष्य हैं। जिनका सेवन लोकनिन्द है, जो भले पुरुषों के द्वारा खाने योग्य नहीं हैं; ऐसे लार, मल, मूत्रादि अनुपसेव्य अभक्ष्य हैं और जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हों, वे अनिष्ट अभक्ष्य हैं; जैसे मधुमेह की बीमारी वालों को चीनी आदि मीठे पदार्थ। उक्त अभक्ष्यों के वर्गीकरण से जैनाहार की वैज्ञानिकता स्पष्ट होती है और यह स्पष्ट होता है कि जैनाहार अहिंसामूलक है। यहाँ एक प्रश्न संभव है कि अनिष्ट अभक्ष्य में हिंसा और अहिंसा का क्या संबंध है; क्योंकि मधुमेह वाले को जिसमें रंचमात्र भी हिंसा नहीं है, ऐसे मीठे पदार्थ भी अभक्ष्य होते हैं। __ जो पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हों, उन पदार्थों का सेवन तीव्रराग बिना संभव नहीं है। यह तो सर्वविदित ही है कि जैन शास्त्रों में रागभाव को भावहिंसा कहा है। अतः अनिष्ट नामक अभक्ष्य में द्रव्यहिंसा भले ही न हो, पर भावहिंसा तो है ही। एक दृष्टि से द्रव्यहिंसा भी है; क्योंकि उसमें भले ही दूसरे के द्रव्यप्राणों का घात न होता हो, पर अस्वास्थ्यकर होने से अपने द्रव्य प्राणों का घात तो होता ही है। पीड़ा होना भी एकदेश घात ही है। शाकाहार के प्रचार-प्रसार के संदर्भ में भी एक बात विचारणीय है। शाकाहार के पक्ष में प्रचार करते समय कुछ लोग मात्र यही बात करते हैं कि शाकाहार स्वास्थ्य के लिए अनुकूल है, सस्ता है; जबकि
SR No.009474
Book TitleShakahar Jain Darshan ke Pariprekshya me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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