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जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में |
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कुछ लोग कहते है कि शक्ति प्राप्त करना हो तो मांसाहार करना ही होगा; क्योंकि मांस शक्ति का भंडार है। घास - पत्ती खानेवालों को शक्ति कहाँ से प्राप्त होगी ?
उनसे हम कहना चाहते हैं कि मांसाहारी लोग शाकाहारी पशुओं काही मांस खाते हैं, मांसाहारियों का नहीं । कुत्ते और शेर का मांस कौन खाता है ? कटने को तो बेचारी शुद्ध शाकाहारी गाय-बकरी ही हैं। जिन पशुओं के मांस को आप शक्ति का भंडार मान बैठे हैं, उन पशुओं में वह शक्ति कहाँ से आई है; यह भी विचार किया है कभी ?
भाई । शाकाहारी पशु जितने शक्तिशाली होते हैं, उतने मांसाहारी नहीं । शाकाहारी हाथी के समान शक्ति किसमें है ? भले ही शेर छलबल से उसे मार डाले, पर शक्ति में वह हाथी को कभी प्राप्त नहीं कर सकता। हाथी का पैर भी उसके ऊपर पड़ जावे तो वह चकनाचूर हो जायेगा; पर वह हाथी पर सवार भी हो जावे तो हाथी का कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है ।
शाकाहारी घोड़ा आज भी शक्ति का प्रतीक है। मशीनों की क्षमता को आज भी अश्वशक्ति ( हार्सपावर ) से नापा जाता है।
शाकाहारी पशु सामाजिक प्राणी हैं; वे मिलकर झुण्डों में रहते हैं, मांसाहारी झुण्डों में नहीं रहते। एक कुत्ते को देखकर दूसरा कुत्ता भौंकता ही है। शाकाहारी पशुओं के समान मनुष्य भी सामाजिक प्राणी है, उसे मिलजुल कर ही रहना है, मिलजुल कर रहने में ही संपूर्ण मानव जाति का भला है। मांसाहारी शेरों की नस्लें समाप्त होती जा रही है, उनकी नस्लों की सुरक्षा करनी पड़ रही है; पर शाकाहारी पशु हजारों की संख्या में मारे जाने पर भी समाप्त नहीं हो पाते। शाकाहारियों में जबरदस्त जीवन शक्ति होती है ।
मनुष्य के दांतों और आंतों की रचना शाकाहारी प्राणियों के समान