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________________ समयसार अनुशीलन जायेगा; परन्तु भाई! ये सब तो शुभभाव हैं, इन्हें सर्वज्ञ भगवान ने बंध का कारण कहा है।' 328 चारों अनुयोगों में एक ज्ञान को ही मोक्ष का कारण कहा गया है। शुद्ध चैतन्यघनस्वरूप भगवान आत्मा में ही एकाग्र होकर श्रद्धान-ज्ञान व रमणता प्रगट करना ही मोक्षमार्ग है । स्वभाव से तो आत्मा स्वयं त्रिकाल ज्ञानस्वरूप ही है, किन्तु वर्तमान में उस त्रिकाली ज्ञानस्वरूप आत्मा में एकाग्रता करना ही 'ज्ञानमेव' का अर्थ है । 'ज्ञानमेव' कहकर आचार्यदेव ने यहाँ वर्तमान पर्याय में शुद्धरत्नत्रयरूप होने की बात की है। भगवान आत्मा जो त्रिकाली ध्रुव ज्ञानस्वभावी वस्तु है, उसमें एकाग्रता करना मोक्ष का कारण है। अशुभ की भांति शुभ भी बंध का कारण होने से धर्म का कारण नहीं हो सकता; अतः मोक्षमार्ग में उसका निषेध किया गया है। " यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है कि यदि मुक्ति के मार्ग में सभी कर्म त्याग करने योग्य हैं तो फिर मुक्तिमार्ग के पथिक मुनिराज क्या करेंगे; क्योंकि उन्हें तो करने को कुछ रहा ही नहीं? इसी प्रश्न का उत्तर आगामी कलश में दिया गया है, जो इसप्रकार है - ( शिखरिणी ) निषिद्धे सर्वस्मिन् सुकृतदुरिते कर्मणि किल प्रवृत्ते नैष्कर्म्ये न खलु मुनयः सन्त्यशरणाः । तदा ज्ञाने ज्ञानं प्रतिचरितमेषां हि शरणं स्वयं विन्दन्त्येते परमममृतं तत्र निरताः ॥ १०४॥ ( रोला ) सभी शुभाशुभभावों के निषेध होने से । अशरण होंगे नहीं रमेंगे निज स्वभाव में ॥ अरे मुनीश्वर तो निशदिन निज में ही रहते । निजानन्द के परमामृत में ही नित रमते ॥ १०४॥ १. प्रवचनरत्नाकर, भाग ५, पृष्ठ ६९ २ . वही, पृष्ठ ७०
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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