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समयसार अनुशीलन
यहाँ एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि आचार्यदेव के वैभव की उत्पत्ति में तो आगम के सेवन, युक्ति के अवलम्बन, परम्पराचार्य गुरु के उपदेश और आत्मा के अनुभव इन चार बातों को लिया है; पर श्रोताओं से 'अनुभव से प्रमाण करना' मात्र यही कहा गया है । ऐसा नहीं कहा कि हे पाठको ! तुम भी हमारी इस बात को आगम से मिलान कर, तर्क की कसौटी पर कसकर, परम्पराचार्यों से समझकर प्रमाणित करना ।
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उक्त तीन बातें तो हो ही गई हैं; क्योंकि यहाँ आगम के आधार पर ही तो बात कही जा रही है, युक्तियाँ भी भरपूर दी ही जावेंगी और आचार्य परम्परा से आगत भी बात है ही; बस शिष्य को तो अब मात्र अनुभव से मिलान करना है, प्रमाणित करना है, अनुभव ही करना है ।
यदि वह समयसार की बात को अन्य आगमों से मिलान करने बैठे, दूसरों से पूछने जाये कि यह सत्य है या असत्य तो समय तो खराब होगा ही, साथ ही यह क्रिया समयसार ग्रन्थाधिराज पर शंका करने जैसी भी होगी । अतः आत्मार्थियों को तो एकत्व - विभक्त भगवान आत्मा का स्वरूप जो आचार्य बता रहे हैं, उसके आधार पर अन्तरोन्मुख होकर मात्र अनुभव ही करना है, अनुभव से ही प्रमाणित करना है । शेष तीनों बातें तो समयसार के स्वाध्याय से सहज ही सम्पन्न हो जावेंगी।
आचार्यदेव ने तीन बातों को तो अत्यन्त सुलभ कर दिया है। अरे भाई ! यदि पेट भरना है तो उसके लिए कमाना होगा, भोज्य पदार्थ बाजार से लाना होगा, उसे बनाना होगा, खाना होगा, चबाना होगा और फिर निगलना भी होगा। इतना तो करना ही होगा, उसके बाद तो भोजन स्वयंचालित प्रक्रिया में चढ़ जावेगा |
हाँ, यह तो हो सकता है कि कमाकर कोई दूसरा दे दे, अन्य कोई भोज्य-सामग्री बाजार से ला भी सकता है, बना भी सकता है, खिला.
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