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________________ समयसार अनुशीलन 394 इस प्रश्न का उत्तर आचार्यदेव नयों का नाम बताकर नहीं देते हैं, अपितु उदाहरण देकर ही वे अपनी बात को स्पष्ट करते हैं । यहाँ ही नहीं, आचार्य कुन्दकुन्ददेव की सर्वत्र यही शैली रही है, वे सभी जगह इसीप्रकार उदाहरण देकर ही समझाते हैं । इस समयसार में भी अनेकों स्थल ऐसे हैं, जहाँ उन्होंने इसीप्रकार के उदाहरणों से अपनी बात स्पष्ट की है। वे ऐसा भी कह सकते थे कि यह कथन उपचरित-असद्भूत व्यवहारनय का या उपचरित सद्भूत व्यवहारनय का है; परन्तु ऐसा न कहकर वे सेना सहित राजा के निकलने का उदाहरण देकर समझाते हैं कि अध्यवसानादि भावों को जीव कहना उसीप्रकार का व्यवहार है कि जिसप्रकार सेनासहित राजा के निकलने पर यह कहा जाता है कि राजा निकल रहा है अथवा राजा पाँच योजन के विस्तार में निकल रहा है। प्रश्न -आचार्यदेव ऐसा क्यों करते हैं? सीधा-सच्चा रास्ता तो यही था कि वे व्यवहारनय के भेद-प्रभेदों में से व्यवहारनय के उस भेद का नाम बता देते, जिस भेद का विषय इसप्रकार के कथन बनते हैं। उत्तर - अरे, भाई! आचार्य भगवान की करुणा अपार है। वे अच्छी तरह जानते थे कि उनके सभी पाठक या श्रोता नयों के विशेषज्ञ नहीं हैं, जो नय का नाम मात्र बता देने से ही समझ जायेंगे; सामान्य श्रोताओं को उदाहरण देकर समझाना ही श्रेयस्कर रहता है। यही कारण है कि आचार्यदेव सर्वत्र उदाहरण देकर ही अपनी बात स्पष्ट करते हैं। प्रश्न – यह तो ठीक है, अच्छी बात है; पर साथ में नय का नाम भी बता देते तो नयों के जानकारों को भी सुविधा हो जाती।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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