SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसार अनुशीलन उत्तर - यदि आपके चित्त में प्रश्न खड़ा होता है तो कोई चिन्ता की बात नहीं है । यह तो आपकी जागरुकता का प्रतीक है कि आप यह ध्यान रखते हैं कि यह शब्द वहाँ भी आया है और वहाँ इसका अलग अर्थ किया गया है। 344 यदि एक ही आचार्य ने एक ही शब्द का विभिन्न स्थानों पर विभिन्न अर्थ किया है तो उसके रहस्य को समझने का प्रयत्न और भी अधिक गहराई से किया जाना चाहिए; क्योंकि उसमें उनका कोई विशेष आशय हो सकता है । ३८वीं गाथा में व्यावहारिक नवतत्त्वों से भिन्नता को शुद्धता कहा गया है और ७३वीं गाथा में सकलकारकचक्र की प्रक्रिया से पार को प्राप्त निर्मल अनुभूतिमात्र को शुद्धता का आधार बनाया है । बात एकदम स्पष्ट है कि यहाँ पर से भिन्नता बताने के लिए पर से एकत्व और पर के प्रति होनेवाले ममत्व का निषेध है और कर्त्ता - कर्म अधिकार में पर के कर्तृत्व और भोक्तृत्व का निषेध है। यही कारण है कि ३८वीं गाथा में व्यावहारिक नवतत्त्वों से भिन्नता को शुद्धता का आधार बनाया है और कर्ता-कर्म अधिकार की गाथा होने से ७३वीं गाथा में कर्ता, कर्म आदि कारकचक्र की प्रक्रिया से पार को प्राप्त निर्मल अनुभूतिमात्र को शुद्धता का आधार बनाया गया है। एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य का कहना भी व्यवहार है और एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य का कर्ता कहना भी व्यवहार ही है । व्यवहार अशुद्धि है और निश्चय शुद्धि । दोनों ही स्थानों में व्यावहारिक भावों का निषेध है; अत: बात तो एक ही है, परन्तु अर्थ में जो अन्तर आया है, वह तो अधिकार परिवर्तन के कारण आया है । इसीप्रकार एक के संबंध में भी समझना चाहिए। ज्ञान-दर्शनमय में तो कोई अन्तर है ही नहीं ।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy