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________________ 303 गाथा ३२-३३ उक्त गाथाएँ ३२वीं गाथा का रूपान्तरण है। ३३वीं गाथा का रूपान्तरण इसप्रकार होगा - ( हरिगीत ) | सब रागक्षय हो जाय जब जितराग सम्यक् श्रमण का। तब क्षीणरागी जिन कहें परमार्थ ज्ञायक आतमा ।। सब द्वेष क्षय हो जाय जब जितद्वेष सम्यक् श्रमण का। तब क्षीणद्वेषी जिन कहें परमार्थ ज्ञायक आतमा॥ सब क्रोधक्षय हो जाय जब जितक्रोध सम्यक् श्रमण का। तब क्षीणक्रोधी जिन कहें परमार्थ ज्ञायक आतमा॥ सब मानक्षय हो जाय जब जितमान सम्यक् श्रमण का। तब क्षीणमानी जिन कहें परमार्थ ज्ञायक आतमा।। नमूने के रूप में यहाँ ३२वीं व ३३वीं गाथा के हिन्दी पद्यानुवाद की चार-चार गाथायें बनाकर बताई गई हैं। इन्हीं के अनुसार अन्य गाथाएँ भी बनाई जा सकती हैं । व्याख्या भी जिसप्रकार ३२वीं व ३३वीं गाथा की की गई है, उसीप्रकार इनकी भी की जा सकती है। अध्यात्मरुचि सम्पन्न प्रत्येक अभ्यासी को यह सब करना चाहिए, आलस्य नहीं करना चाहिए; क्योंकि इसप्रकार करने से ज्ञान में स्पष्टता होती है, विषय-वस्तु समझने में सुविधा रहती है, बात धारणा में बैठती है, परिणामों में निर्मलता होती है, आचार्यदेव की आज्ञा का पालन होता है। आध्यात्मिकसत्पुरुष पूज्य श्रीकानजीस्वामी ने इन गाथाओं पर प्रवचन करते समय इनकी १६ गाथाओं के रूप में व्याख्या की है; जो मूलत: पठनीय है । नमूने के रूप में उसका संक्षिप्त सार इसप्रकार है___ "गाथा सूत्र में एक मोह का ही नाम लिया है। उसमें 'मोह' पद बदलकर राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, कर्म, नोकर्म, मन-वचनकाय - इन पदों को रखकर ग्यारह सूत्रों का भिन्न-भिन्न रूप में व्याख्यान करना चाहिए।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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