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________________ समयसार अनुशीलन 288 प्रश्न -भले ही तीर्थंकर केवली की आज्ञा आत्मानुभव की हो. पर स्तुति तो उनके गुणानुवादरूप ही होना चाहिए। उत्तर - नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है; क्योंकि निश्चयस्तुति विकल्पात्मक नहीं होती। नियमसार में तो निश्चय से भक्ति, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान आदि सभी को आत्मानुभूति में ही समाहित कर लिया है। मुनिराजों के २८ मूलगुणों में छह आवश्यकों के रूप में स्तुति और वन्दना आते हैं, स्वाध्याय भी आता है; पर बाहुबली तो एक वर्ष तक ध्यान में ही खड़े रहे तो क्या उनके २८ मूलगुण खण्डित हो गये? क्या वे छह आवश्यक नहीं पालने के दोषी हैं? ___ नहीं, कदापि नहीं; क्योंकि निर्विकल्प आत्मध्यान में निश्चय से सभी मूलगुण समाहित हो जाते हैं, सभी आवश्यक आ जाते हैं । इसप्रकार यह भगवान आत्मा का अनुभव निश्चयस्तुति भी है, जितेन्द्रियपना भी है और इसमें भगवान आत्मा को ज्ञेयों से भिन्न जाना, अनुभव किया; अतः ज्ञेय-ज्ञायकसंकरदोष का परिहार भी हो गया। इसमें इन्द्रियों के भोगों का त्याग तो आ ही गया, साथ में पर को अपना जानने-मानने का त्याग भी आ गया । अत: यह सच्चा जितेन्द्रियपना हुआ; अकेले बाह्य विषय-भोगों को बलात् त्याग कर देना वास्तविक जितेन्द्रियपना नहीं है। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय एवं इनके विषयभूत पदार्थों - ज्ञेयों से भिन्न ज्ञायकभावरूप निजभगवान आत्मा का अनुभव करना ही जितेन्द्रियपना है, प्रथमप्रकार की निश्चयस्तुति है और इसमें किसी भी प्रकार का ज्ञेय-ज्ञायकसंकरदोष भी नहीं है। _ विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि द्रव्येन्द्रियाँ प्रगटरूप से जड़ होने से, उन्हें जीतने के लिए निर्मल भेदाभ्यास की प्रवीणता से प्राप्त अंतरंग में प्रगट अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभाव लिया; भावेन्द्रियाँ खण्ड
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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