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________________ 264 समयसार अनुशीलन को खोज लो। अरे भाई ! अब जग जाइये, उसी के रस में पग जाइये, उसी में समा जाइये; क्योंकि मिथ्यात्व के नाश का एक यही सम्यक्पुरुषार्थ है। यदि एक मुहूर्त के लिए भी तेरे इस मिथ्यात्व का नाश हो गया तो तेरा कल्याण हुए बिना न रहेगा, तू अनन्तसुखी हुए बिना न रहेगा, तुझे मुक्ति की प्राप्ति होगी, होगी, अवश्य होगी; क्योंकि मार्ग यही है, अन्य कोई मार्ग है ही नहीं। __ अत: हे भाई ! जैसे भी बने मरपच कर भी यह कार्य अवश्य करो,. इससे तुम्हारा कल्याण होगा। सामाजिक संगठन और शान्ति बनाए रखना और सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त प्रगतिशील समाज की स्थापना ही तो इस बहुमूल्य नरभव की सार्थकता नहीं है; इस मानव जीवन में तो आध्यात्मिक सत्य को खोजकर, पाकर, आत्मिक शान्ति प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करना ही वास्तविक कर्तव्य है। आध्यात्मिक सत्य में भी पर्यायगत सत्य को जानना तो है, पर उसमें उलझना नहीं है, उसे तो मात्र जानना है; पर त्रैकालिक परमसत्य को, परमतत्त्व को मात्र खोजना ही नहीं है, जानना भी है, उसी में जमना है, रमना है, उसी में समा जाना है, उसीरूप हो जाना है। भाई! अनन्त शान्ति और सुख प्राप्त करने का तो एकमात्र यही मार्ग है। अत: मेरी तो यही भावना है कि यह आध्यात्मिक परमसत्य, त्रैकालिक परमसत्य, ज्ञानानन्दस्वभावी, ध्रुव, आत्मतत्त्व - जिन्हें खोजना है, वे खोजें; जानना है, वे जानें; पाना है, वे पावें। जिन्होंने खोज लिया हो, पा लिया हो, वे उसी में जम जावें, रम जावें, समा जावें और अनन्तसुखी हों, शान्त हों। - सत्य की खोज, पृष्ठ २५२
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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