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________________ 263 कलश २३ एकवार ऐसी स्थिति प्राप्त हो जाने पर फिर जन्मभर उस ही का विचार करते रहो, उस ही का ध्यान करते रहो, उसी में क्रीडा करते रहो; इसप्रकार सम्पूर्ण जीवन भर अतीन्द्रिय आनन्दरूपी परमरस का पान करते रहो। राग-द्वेष रूप विलास एवं संस्कार का वास छोड़कर तथा मोह का नाश कर अनन्तकाल तक सच्चा जीवन जीते रहो । सच्चा जीवन तो आत्मानुभवी ज्ञानी धर्मात्माओं का ही है, शेष सब तो भवभ्रमण ही है 1 ― मोहभाव की उत्पत्ति ही मरण है, भावमरण है और मोह का अभाव ही जीवन है, सुखी जीवन है, शान्त जीवन है । इसीलिए यहाँ कहा गया है कि मोह का नाश कर अनन्तकाल तक अनन्त - आनन्दमय जीवन जीने का सौभाग्य प्राप्त करो । प्रश्न – मोह का नाश किसप्रकार करें ? मोह के नाश का उपाय क्या है, सम्यक्पुरुषार्थ क्या है ? 1 उत्तर - शरीरादि परपदार्थों और उनके लक्ष्य से होने वाले मोहराग-द्वेषादि भावों में अपनापन ही मोह है, उनमें एकत्वबुद्धि और ममत्वबुद्धि ही मोह है । इस मोह के नाश का उपाय किसी प्रकार का कोई क्रियाकाण्ड नहीं है, व्रत- शील संयमादि भी नहीं है, जप-तप तीर्थयात्रा भी नहीं है, किसी की सेवा-चाकरी आदि भी नहीं है । इस मोह के नाश का उपाय तो पर से भिन्न, राग से भिन्न, पर्याय से पार एवं सर्वपर्यायों में एकाकार तथा गुणभेद से भिन्न, प्रदेशभेद से भिन्न अनन्तगुणात्मक असंख्यातप्रदेशी एक भगवान आत्मा में अपनापन स्थापित करना, उसी का विचार करना, उसी का मंथन करना, घोलन करना, उसी का ध्यान करना; - इसीप्रकार जीवन भर उसी का रसपान करते रहना है । इसलिए हे भाई ! तुम अपने ज्ञान के परमशुद्धनिश्चयनयरूप अंश को जगाकर निज भगवान आत्मा, त्रिकाली शुद्धज्ञायक भावरूपी हंस
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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