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________________ समयसार गाथा १ आत्मख्याति के मंगलाचरण के बाद अब आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार की मूल गाथाएँ आरम्भ होती हैं । सर्वप्रथम मंगलाचरण की गाथा है। उसकी उत्थानिका लिखते हुए आत्मख्यातिकार आचार्य अमृतचन्द्र लिखते हैं कि 'अथ सूत्रावतारः अब सूत्र का अवतार होता है ।' आचार्य अमृतचन्द्र के हृदय में समयसार की कितनी महिमा है यह बात उनके इस कथन में झलकती है । - लोक में 'अवतार' शब्द बहुत महिमावंत शब्द है । यह शब्द लोककल्याण के लिए भगवान के अवतरण के अर्थ में प्रयुक्त होता है । यहाँ समयसार की मूल गाथाओं के लिए उक्त शब्द का प्रयोग करके आचार्य अमृतचन्द्र उन गाथाओं के लोककल्याणकारी स्वरूप को स्पष्ट करना चाहते हैं । तात्पर्य यह है कि आचार्य कुन्दकुन्द की इन गाथाओं में लोक के परमकल्याण की बात ही आने वाली है । समयसार के मंगलाचरण की मूल गाथा इसप्रकार है वंदित्तु सव्वसिद्धे ध्रुवमचलमणोवमं गदिं पत्ते । वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुदकेवली भणिदं ॥ १ ॥ ( हरिगीत ) - ध्रुव अचल अनुपम सिद्ध की कर वंदना मैं स्वपर हित । यह समयप्राभृत कह रहा श्रुतकेवली द्वारा कथित ॥ १ ॥ मैं ध्रुव, अचल और अनुपम गति को प्राप्त हुए सभी सिद्धों को नमस्कार कर श्रुतकेवलियों द्वारा कहे गये इस समयसार नामक प्राभृत को कहूँगा । इस गाथा में आचार्य कुन्दकुन्ददेव ध्रुव, अचल और अनुपम गति को प्राप्त सर्वसिद्धों को नमस्कार करके श्रुतकेवलियों द्वारा कथित समयसार नामक ग्रंथाधिराज बनाने की प्रतिज्ञा करते हैं ।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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