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________________ 247 गाथा २०-२२ मेरे हैं; ये मेरे पहले थे, इनका मैं पहले था; तथा ये सब भविष्य में मेरे होंगे, मैं भी भविष्य में इनका होऊँगा - वह व्यक्ति मूढ़ है, अज्ञानी है; किन्तु जो पुरुष वस्तु का वास्तविक स्वरूप जानता हुआ ऐसे झूठे विकल्प नहीं करता है, वह ज्ञानी है। तात्पर्य यह है कि पर में अपनापन अनुभव करनेवाले अज्ञानी हैं और अपने आत्मा में अपनापन अनुभव करनेवाले ज्ञानी हैं । ज्ञानीअज्ञानी की मूलतः यही पहिचान है। __ आचार्य अमृतचन्द्र इस बात को अग्नि और ईंधन का उदाहरण देकर आत्मख्याति में इसप्रकार समझाते हैं - "जिसप्रकार कोई पुरुष ईंधन और अग्नि को मिला हुआ देखकर ऐसा झूठा विकल्प करे कि जो अग्नि है, वही ईंधन है और जो ईंधन है, वही अग्नि है; अग्नि का ईंधन है और ईंधन की अग्नि है; अग्नि का ईंधन पहले था और ईंधन की अग्नि पहले थी; अग्नि का ईंधन भविष्य में होगा और ईंधन की अग्नि भविष्य में होगी, तो वह अज्ञानी. है; क्योंकि इसप्रकार के विकल्पों से अज्ञानी पहिचाना जाता है। ___ इसीप्रकार परद्रव्यों में - मैं ये परद्रव्य हूँ, ये परद्रव्य मुझरूप है; ये परद्रव्य मेरे हैं, मैं इन परद्रव्यों का हूँ; ये पहले मेरे थे, मैं पहले इनका था; ये भविष्य में मेरे होंगे और मैं भी भविष्य में इनका होऊँगा - इसप्रकार के झूठे विकल्पों से अप्रतिबुद्ध अज्ञानी पहिचाना जाता है। ___ अग्नि है, वह ईंधन नहीं है और ईंधन है, वह अग्नि नहीं है; अग्नि है, वह अग्नि ही है और ईंधन है, वह ईंधन ही है। अग्नि का ईंधन नहीं है और ईंधन की अग्नि नहीं है; अग्नि की अग्नि है और ईंधन का ईंधन है। अग्नि का ईंधन पहले नहीं था, ईधन की अग्नि पहले नहीं थीं; अग्नि की अग्नि पहले थी, ईंधन का ईंधन पहले था, अग्नि का ईंधन भविष्य में नहीं होगा और ईंधन की अग्नि भविष्य में नहीं होगी; अग्नि की अग्नि ही भविष्य में होगी और ईंधन का ईंधन ही भविष्य में होगा।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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