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________________ 213 गाथा १६ यह बात अवश्य है कि पात्र सत्पुरुषों को दिया गया उपदेश ही कार्यकारी होता है; दुर्जनों को दिया गया उपदेश न केवल निरर्थक ही जाता है, कभी-कभी विपत्ति का कारण भी बन सकता है। इसीलिए तो कहा गया कि 'सीख न दीजे बानरा, उल्टा देय मिटाय'। अत: यहाँ साधुपुरुषों, सज्जनपुरुषों को ही सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र धारण करने की प्रेरणा दी गई है। प्रश्न –'सीख न दीजे बानरा, उल्टा देय मिटाय' - इसका क्या आशय है? उत्तर - इस प्रश्न का उत्तर 'पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव' नामक पुस्तक में इसप्रकार दिया गया है - "इस बात का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है कि कहीं दूसरों के सुधार के चक्कर में हम अपना ही अहित न कर बैठें । हमारी दशा भी उस चिड़िया के समान न हो जावे, जिसने बरसात में भीगते हुए बन्दर को यह सीख दी थी कि भाई तुम्हारे तो आदमी के समान हाथपैर हैं; तुम बरसात, धूप और सर्दी से बचने के लिए घर क्यों नहीं बनाते? देखो, हमारे तो हाथ भी नहीं है, फिर भी हम अपना एक घोंसला बनाती हैं और उसमें शान्ति से रहती हैं, गर्मी, सर्दी और बरसात से बच जाती हैं। भैया मेरी मानो तो तुम भी एक घर जरूर बना लो। उसका सत्य और सार्थक उपदेश भी चंचल प्रकृति बंदर को सुहा नहीं रहा था। अत: वह एकदम चिड़चिड़ा कर बोला - 'तू चुप रहती है या फिर .....' बेचारी चिड़िया सहम गई, पर साहस बटोर कर फिर बोली - 'भैया, मैं तो तुम्हारे हित की बात कह रही थी। यदि तुम्हें बुरा लगता है तो कुछ नहीं कहूंगी। मुझे तो तुम पर दया आ रही थी। इसलिए इतना
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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