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________________ 198 समयसार अनुशीलन इसीप्रकार इस अज्ञानी जगत ने अकेले आत्मा को कभी नहीं जाना; शरीरादि संयोगों में, बद्धस्पृष्टादिभावों में ही देखा-जाना है; अत: उन्हें आत्मा का अनुभव नहीं होता, सम्यग्ज्ञान नहीं होता । शास्त्रों में पढ़कर या गुरुमुख से सुनकर वे भले ही यह कहते हों कि आत्मा ज्ञानानन्दस्वभावी है, शरीरादि से भिन्न है, अबद्धस्पृष्टादिभावों से युक्त है; पर उन्हें शरीरादि से भिन्न, अबद्धस्पृष्टादिभावों से युक्त, ज्ञानानन्दस्वभावी आत्मा का अनुभव नहीं होता; बात मात्र बातों तक ही सीमित रहती है। ___ जब कोई स्वादलोलुप मनुष्य शाकादि में मिश्रित नमक खाता है तो उसके स्वाद में सामान्यनमक का तिरोभाव और विशेषनमक का आविर्भाव हो जाता है; किन्तु जब शाकादि अन्यद्रव्य के संयोग से रहित केवल शुद्धनमक खाया जाता है तो विशेषनमक का तिरोभाव और सामान्यनमक का आविर्भाव हो जाता है; क्योंकि उस समय वह शुद्धनमक खारा-खारा ही लगता है। __ इसीप्रकार जब कोई ज्ञेयलुब्ध व्यक्ति ज्ञेयमिश्रित ज्ञान का अनुभव करता है, ज्ञेयाकार ज्ञान का अनुभव करता है, तब उसके ज्ञान में सामान्यज्ञान का तिरोभाव और विशेषज्ञान का आविर्भाव हो जाता है; किन्तु जब कोई ज्ञानी अन्य ज्ञेयाकारों के संयोग की रहितता से केवल ज्ञान का अनुभव करता है तो विशेषज्ञान का तिरोभाव और सामान्यज्ञान का आविर्भाव हो जाता है। यह सामान्यज्ञान का आविर्भाव होना ही ज्ञानानुभूति है, आत्मानुभूति है, शुद्धनय का उदय होना है। इसप्रकार ये सुनिश्चित हुआ है कि आत्मानुभूति के काल में सामान्यज्ञान का आविर्भाव और विशेषज्ञान का तिरोभाव हो जाता है। इस बात का स्पष्टीकरण स्वामीजी इसप्रकार करते हैं -
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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