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समयसार अनुशीलन का जन-जन तक पहुँचना आवश्यक ही नहीं. अनिवार्य है। यही विचार कर यह उपक्रम किया जा रहा है। इसके मूल में अन्य कोई. लौकिक कामना नहीं है। समयसार की आत्मख्याति टीका का मंगलाचरण इसप्रकार है :
( अनुष्टुभ् ) नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते। चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावान्तरच्छिदे॥१॥
( दोहा ) निज अनुभूति से प्रगट, चित्स्वभाव चिद्रूप।
सकलज्ञेय-ज्ञायक नौं, समयसार सद्रूप॥१॥ स्वानुभूति से प्रकाशित, चैतन्यस्वभावी, सर्वपदार्थों को जाननेवाले सत्तास्वरूप समयसार को नमस्कार हो ।
मंगलाचरण के इस छन्द का भावानुवाद कविवर पंडित बनारसीदासजी नाटक समयसार में इसप्रकार करते हैं -
( दोहा ) शोभित निज अनुभूति जुत चिदानंद भगवान।
सार पदारथ आतमा, सकल पदारथ जान ।। सम्पूर्ण पदार्थों को जाननेवाला और समस्त पदार्थों में सारभूत चिदानन्द भगवान आत्मा आत्मानुभूति से सम्पन्न होता हुआ शोभायमान हो रहा है। ___ मंगलाचरण के उक्त छन्द में शुद्धात्मा को नमस्कार किया गया है। यहाँ समयसार का अर्थ शुद्धात्मा ही लिया गया है । समय शब्द का अर्थ आचार्य अमृतचन्द्र स्वयं ही गाथा २ व ३ की टीका में विस्तार से स्पष्ट करेंगे। अत: उसके सन्दर्भ में विशेष चर्चा करना वहाँ ही ठीक रहेगा।