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रहस्य : रहस्यपूर्णचिट्ठी का उक्त सम्पूर्ण मंथन पर विचार करने पर जो वस्तुस्वरूप स्पष्टरूप से उभरकर सामने आता है; उसे हम सरल-सुबोध भाषा में इसप्रकार स्पष्ट कर सकते हैं।
पण्डित श्री टोडरमलजी ने जिस पत्र के उत्तर में यह रहस्यपूर्णचिट्ठी लिखी थी; यद्यपि वह पत्र उपलब्ध नहीं है; तथापि पण्डितजी के इस वाक्य से कि ह्र तुमने लिखा कि निश्चयसम्यक्त्व प्रत्यक्ष है और व्यवहारसम्यक्त्व परोक्ष है ह यह स्पष्ट ही है कि उन्होंने सम्यग्दर्शन में प्रत्यक्ष और परोक्ष भेद किये थे।
इसलिए उनको अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में लिखा गया कि प्रत्यक्ष और परोक्ष तो प्रमाण के भेद हैं, सम्यग्दर्शन के नहीं।
सम्यग्ज्ञान को प्रमाण कहते हैं। प्रमाण सम्यग्ज्ञानरूप होने से ज्ञान गुण की पर्याय है और सम्यग्दर्शन श्रद्धा गुण की पर्याय है।
सामान्यतः ज्ञान पाँच प्रकार का होता है ह्र मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान । उक्त पाँच ज्ञानों में आरंभ के मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ह्र ये दो ज्ञान परोक्षप्रमाण हैं और अन्त के तीन अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान प्रत्यक्षप्रमाण हैं।
अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञान क्षयोपशमज्ञानरूप होने से एकदेश प्रत्यक्ष और केवलज्ञान क्षायिकज्ञानरूप होने से सकल प्रत्यक्ष है।
सीधे आत्मा से उत्पन्न होनेवाले अत्यन्त स्पष्ट ज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण और मुख्यरूप से इन्द्रियाँ और मन हैं निमित्त जिसमें, ऐसे पराधीन और अस्पष्ट ज्ञान को परोक्ष प्रमाण कहते हैं।
परीक्षामुख सूत्र में विशद (निर्मल) ज्ञान को प्रत्यक्ष और अविशद (अनिर्मल) ज्ञान को परोक्ष कहा गया है।'
प्रत्यक्ष ज्ञान के परमार्थ (निश्चय) प्रत्यक्ष और व्यवहार प्रत्यक्ष ह्न इसप्रकार के भेद भी किये जाते हैं।
अक्षं अक्षं प्रति यत् वर्तते तत्प्रत्यक्षम् । जो अक्ष से उत्पन्न हो, उसे १. सम्यग्ज्ञानं प्रमाणम् : न्यायदीपिका, प्रथम प्रकाश, पृष्ठ ९ २. परीक्षामुख, अध्याय २, सूत्र ३ एवं अध्याय ३, सूत्र १
छठवाँ प्रवचन प्रत्यक्ष कहते हैं। अक्ष शब्द का अर्थ आत्मा भी होता है और इन्द्रियाँ भी होता है। अतः जब हम अक्ष का अर्थ आत्मा करते हैं तो उसका भाव होता है कि जो सीधा आत्मा से उत्पन्न हो, वह प्रत्यक्ष है; पर जब अक्ष का अर्थ इन्द्रियाँ करें तो उसका अर्थ होगा कि जो ज्ञान इन्द्रियों के सहयोग से उत्पन्न हो, वह प्रत्यक्ष है।
इसप्रकार यह सुनिश्चित है कि सीधे आत्मा से उत्पन्न होनेवाले सम्यग्ज्ञान को पारमार्थिक (निश्चय) प्रत्यक्ष कहते हैं और इन्द्रियों के निमित्तपूर्वक होनेवाले सामान्यज्ञान को, इन्द्रियज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं। ___ सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष माने वास्तविक प्रत्यक्ष नहीं, जिसे लोक व्यवहार में प्रत्यक्ष कहा जाता है, वह । दुनिया में लोग कहते हैं कि मैंने उसे प्रत्यक्ष देखा, अपनी आँखों से देखा। ऐसा कहते हैं कि मैंने उसे ऐसा कहते अपने कानों से सुना है, मैंने वह वस्तु चखकर देखी है; अरे, भाई ! जब तूने आँख से देखा, कान से सुना, जीव से चखा; तो वह ज्ञान पराधीन हो गया, इन्द्रियाधीन हो गया; इसलिए परोक्ष ही हो गया न; क्योंकि पराधीन ज्ञान को ही तो परोक्ष कहते हैं। __ अन्य लौकिक ज्ञान की अपेक्षा इसमें कुछ विशेष स्पष्टता होने से परोक्ष होने पर भी इसे व्यवहार में प्रत्यक्ष कह देते हैं। इसका ही नाम शास्त्रों में सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा है।
इसके अतिरिक्त एक अनुभव प्रत्यक्ष भी होता है।
यहाँ प्रश्न यह है कि अनुभव के काल में आत्मा का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है या परोक्ष । यदि प्रत्यक्ष ज्ञान होता है तो वह कौन सा प्रत्यक्ष है पारमार्थिक प्रत्यक्ष या सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष । __ परोक्ष प्रमाण मति, स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम के भेद से ६ प्रकार का है। आगम प्रमाण श्रुतज्ञानरूप है और शेष पाँच प्रमाण मतिज्ञानरूप हैं; क्योंकि उन सभी में मतिज्ञानावरणकर्म का क्षयोपशम निमित्त होता है।
मति, स्मृति आदि का स्वरूप मूल में ही स्पष्ट किया जा चुका है।