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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
चिरभव भ्रमण करत दुःख सहा, मरण समाधि न कबहूँ लहा । समाधिरण को पाय, जजत समाधि प्रगटहो जाय ।। १८ ।। ॐ ह्रीं श्री समाधिगुप्तिजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। ८३ ।। अन्य सहाय बिना जिनराज, स्वयं लेव परमातम राज । नाथ स्वयंभू मग शिवदाय, पूजत बाधा सब टल जाय ।। १९ ।। ॐ ह्रीं श्री स्वयंभूजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। ८४ ।। मनदर्प के नाशनहार, निज कंदर्प आत्मबल धार ।
दर्प अयोग बुद्धि के काज, पूजूं अर्ध लिए जिनराज ||२०|| ॐ ह्रीं श्री कंदर्पजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥८५॥
गुण अनंत के नाम अनंत, श्री जयनाथ धरम भगवंत । पूजूं अष्टद्रव्य कर लाव, विघ्न सकल जासे टल जाय ।। २१ ।। ॐ ह्रीं श्री जयनाथजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८६ ॥
पूज्य आत्मगुण धर मलहार, विमलनाथ जग परम उदार ।
शील परम पावन के काज, पूजूँ अर्घ लेय जिनराज ।। २२ ।। ॐ ह्रीं श्री विमलजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। ८७ ।। दिव्यवाद अर्हन्त अपार, दिव्यध्वनि प्रगटावन हार। आत्मतत्त्व ज्ञाता सिरताज, पूजूं अर्घ लेय जिनराज || २३ || ॐ ह्रीं श्री दिव्यवादजिनाय अच्छे निर्वपामीति स्वाहा ॥८८॥
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शक्ति अपार आत्म धरतार, प्रगट करें जिनयोग संभार । वीर्य अनन्तनाथ को ध्याय, नतमस्तक पूजूँ हरषाय ।। २४ ।। ॐ ह्रीं श्री अनंतवीर्यजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। ८९ ।। (दोहा)
तीर्थराज चौबीस जिन भावी भव हरतार बिम्ब प्रतिष्ठा कार्य में, पूजूं विघ्न निवार ।।
ॐ ह्रीं श्री बिम्बप्रतिष्ठोद्यापने मुख्यपूजार्हचतुर्थवलयोन्मुद्रितानागतचतुर्विंशतिमहापद्माद्यनंतवीर्यान्तेभ्यो जिनेभ्यः पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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