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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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ढाई द्वीप के पाँच विदेह क्षेत्र में विद्यमान बीस तीर्थंकरों
के लिए
( सृग्विणी ) मोक्षनगरी पति हंस राजा सुतं, पुण्डरीका पुरी राजते दुःखहतम् । सीमंधर जिना पूजते दुःखहना, फेर होवे न या जगत में आवना ।। १ ।। ॐ ह्रीं श्री सीमन्धरजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। ९० ।।
धर्मद्वय वस्तुद्वय नय-प्रमाणद्वयं, नाथ जुगमन्धरं कथितं व्रतद्वयं । भूपश्री रुह सुतं ज्ञानकेवलगतं, पूजिये भक्ति से कर्मशत्रु हतं ॥ २ ॥ ॥ ॐ ह्रीं श्री जुगमन्धरजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। ९९ ।। भूप सुग्रीव विजया से जाए प्रभू, एण चिह्नं धरे जानते तीन भू । स्वच्छ सीमापुरी राजते बाहुजिन, पूजिये साधु को रागरुषदोषबिन ।।३।। ॐ ह्रीं श्री बाहुजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। ९२ ।। वंशनभ निर्मलं सूर्य सम राजते, कीर्तिमय बन्ध बिन क्षेत्र शुभ शोभते । मात सुन्दर सुनन्दा सु भवभयहतं, पूजते बाहु शुभ भवभय निर्गतं ॥ ४ ॥ । ॐ ह्रीं श्री सुबाहुजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। ९३ ।। जन्म अल्कापुरी देवसेनात्मजं, पुण्यमय जन्मए नाथ सञ्जातकं । पूजिये भाव द्रव्य आठों लिये, और रस त्यागकर आत्मरस को पिये । ॥५॥ ॐ ह्रीं श्री संजातकजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१४।। जन्मपुर मङ्गला चन्द्र चिह्नं धरे, आप से आप ही भव उदधि उद्धरे । प्रभस्वयं पूजते विघ्न सारे टरे, होय मङ्गल महा कर्मशत्रू डरे । । ६ । । ॐ ह्रीं श्री स्वयंप्रभजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। ९५ ।। वीरसेना सुमाता सुसीमापुरी, देवदेवी परमभक्ति उर में धरी । देव ऋषभाननं आननं सार है, देखते पूजते भव्य उद्धार है ।।७।। ॐ ह्रीं श्री ऋषभाननजिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। ९६ ।। u