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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
L'भव्यभक्ति जिनराज कराय, सफल काल तिनका हो जाय।.
देव उदंक पूज जो करें, मनुषदेह अपनी वर करें।।९।। ____ॐ ह्रीं श्री उदङ्कदेवजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।७४।। सुरविद्याधर प्रश्न कराय, उत्तर देत भरम टल जाय। प्रश्नकीर्ति जिन यश के धार, पूजत कर्मकलंक निवार ।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री प्रश्नकीर्तिजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।७५।। पापदलन तें जय को पाय, निर्मल यश जग में प्रकटाय । गणधरादि नित वन्दन करें, पूजत पापकर्म सब हरै।।११।। ___ॐ ह्रीं श्री जयकीर्तिजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।७६।। बुद्धिपूर्ण जिन बन्दूँ पाय, केवलज्ञान ऋद्धि प्रकटाय । चरण पवित्र करण सुखदाय, पूजत भवबाधा नश जाय ।।१२।।
ॐ ह्रीं श्री पूर्णबुद्धिजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।७७।। हैं कषाय जग में दुःखकार, आत्मधर्म के नाशनहार। नि:कषाय होंगे जिनराज, तातें पूनँ मङ्गल काज ।।१३।।
ॐ ह्रीं श्री नि:कषायजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।७८।। कर्मरूप मल नाशनहार, आत्म शुद्ध कर्ता सुखकार। विमलप्रभ जिन पूजॅ आय, जासे मन विशद्ध हो जाय ।।१४।।
ॐ ह्रीं श्री विमलप्रभजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।७९।। दीप्तवन्त गुण धारण हार, बहुलप्रभ पूजों हितकार। आतमगुण जासै प्रगटाय, मोहतिमिर क्षण में विनशाय ।।१५।।
ॐ ह्रीं श्री बहुलप्रभजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।८०।। जल नभ रत्न विमल कहवाय, सो अभूत व्यवहार वशाय । भावकर्म अठकर्म महान, हत निर्मल जिन पूनँ जान ।।१६।।
ॐ ह्रीं श्री निर्मलजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।८१।। मन-वच-काय गुप्ति धरतार, चित्रगुप्ति जिन हैं अविकार। पूजूं पद तिन भाव लगाय, जासें गुप्तित्रय प्रगटाय ।।१७।।
ॐ ह्रीं श्री चित्रगुप्तिजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।८२।।