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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
L'हुआ निमग्न तृप्ति सागर में, तृष्णा ज्वाल बुझाई है।
क्षुधा आदि सब दोष नशें, वह सहज तृप्ति उपजाई है।। श्री देव-शास्त्र-गुरुवर सदैव, मम परिणति में आदर्श रहो। ज्ञायक में ही स्थिरता हो, निज भाव सदा मंगलमय हो ।। ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञान भानु का उदय हुआ, आलोक सहज ही छाया है। चिरमोह महातम हे स्वामी, क्षणभर में सहज विलाया है।। श्री देव-शास्त्र-गुरुवर सदैव, मम परिणति में आदर्श रहो। ज्ञायक में ही स्थिरता हो, निज भाव सदा मंगलमय हो।। ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। द्रव्य-भाव-नोकर्म शून्य, चैतन्य प्रभु जब से देखा। शुद्ध परिणति प्रकट हुई, मिटती परभावों की रेखा ।। श्री देव-शास्त्र-गुरुवर सदैव, मम परिणति में आदर्श रहो। ज्ञायक में ही स्थिरता हो, निज भाव सदा मंगलमय हो।।
ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। अहो पूर्ण निज वैभव देखा, नहीं कामना शेष रही। निर्वाञ्छक हो गया सहज मैं, निज में ही अब मुक्ति दिखी।। श्री देव-शास्त्र-गुरुवर सदैव, मम परिणति में आदर्श रहो। ज्ञायक में ही स्थिरता हो, निज भाव सदा मंगलमय हो ।।
ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। निज से उत्तम दिखे न कुछ भी. पाई निज अनर्घ्य माया। निज में ही अब हुआ समर्पण, ज्ञानानन्द प्रकट पाया ।। श्री देव-शास्त्र-गुरुवर सदैव, मम परिणति में आदर्श रहो। ज्ञायक में ही स्थिरता हो, निज भाव सदा मंगलमय हो।। ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
(दोहा) ज्ञानमात्र परमात्मा, परम प्रसिद्ध कराय। धन्य आज मैं हो गया, निज स्वरूप को पाय ।।
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