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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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श्री देव - शास्त्र - गुरु पूजन
(दोहा)
देव - शास्त्र - गुरुवर अहो, मम स्वरूप दर्शाय । किया परम उपकार में, नमन करूँ हर्षाय ।। जब मैं आता आप ढिंग, निज स्मरण सुआय । निज प्रभुता मुझमें प्रभो, प्रत्यक्ष देय दिखाय ।।
ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । ( वीर छन्द )
जब से स्व-सन्मुख दृष्टि हुई, अविनाशी ज्ञायक रूप लखा। शाश्वत अस्तित्व स्वयं का लखकर जन्म-मरणभय दूर हुआ ।। श्री देव-शास्त्र-गुरुवर सदैव, मम परिणति में आदर्श रहो। ज्ञायक में ही स्थिरता हो, निज भाव सदा मंगलमय हो ।। ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । निज परमतत्त्व जब से देखा, अद्भुत शीतलता पाई है। आकुलतामय संतप्त परिणति, सहज नहीं उपजाई है। श्री देव शास्त्र-गुरुवर सदैव, मम परिणति में आदर्श रहो। ज्ञायक में ही स्थिरता हो, निज भाव सदा मंगलमय हो । ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुभ्यः संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । निज अक्षयप्रभु के दर्शन से ही, अक्षयसुख विकसाया है। क्षत् भावों में एकत्वपने का, सर्व विमोह पलाया है ।। श्री देव - शास्त्र - गुरुवर सदैव, मम परिणति में आदर्श रहो । ज्ञायक में ही स्थिरता हो, निज भाव सदा मंगलमय हो ।।
ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुभ्यो अक्षवपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। निष्काम परम ज्ञायक प्रभुवर, जब से दृष्टि में आया है। विभु ब्रह्मचर्य रस प्रकट हुआ, दुर्दान्त काम विनशाया है ।। श्री देव-शास्त्र-गुरुवर सदैव, मम परिणति में आदर्श रहो। ज्ञायक में ही स्थिरता हो, निज भाव सदा मंगलमय हो ।। ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा- 1