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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
शासन ध्वज लहराओ... शासन ध्वज लहराओ म्हारा साथी। पंच कल्याण रचाओ म्हारा साथी ।। आओ रे आओ आओ म्हारा साथी।
जीवन सफल बनाओ म्हारा साथी ।।टेक।। स्वर्गपुरी से सुरपति आये, अनेकान्तमय ध्वज ले आए। स्याद्वाद का रंग भराकर, सबका संशय तिमिर मिटाए।।
परिणति में लहराओ म्हारा साथी ।।१।। मंगल स्वस्तिक चिह्न बनाओ, चारगति का दुःख नशाओ। शुद्धातम को लक्ष्य बनाकर, भेदज्ञान की ज्योति जलाओ।।
मोक्ष महल में आओ म्हारा साथी ।।२।। गुण अनन्तमय निर्मल आतम, अनेकान्त कहते परमातम । धर्म-युगल जो रहे विरोधी रहते एकसाथ निज आतम ।।
निज स्वरूप रस पाओ म्हारा साथी ।।३।। मंगल स्वर्णकलश ले आओ, इस पर स्वस्तिक चिह्न बनाओ। माता के कर कमलों द्वारा, मंगल वेदी पर पधराओ।।
नाँदी विधान रचाओ म्हारा साथी ।।४।।
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वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी। साधु दिगम्बर, नग्न निरम्बर, संवर भूषण धारी ।।टेक ।। कंचन-काँच बराबर जिनके, ज्यों रिपु त्यों हितकारी। महल मसान, मरण अरु जीवन, सम गरिमा अरु गारी ।।१।। सम्यग्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परजारी । शोधत जीव सुवर्ण सदा जे, काय-कारिमा टारी ।।२।। जोरि युगल कर भूधर' विनवे, तिन पद ढोक हमारी। भाग उदय दर्शन जब पाऊँ, ता दिन की बलिहारी ।।३।।