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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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L'जा पाण्डुशिला क्षीरोदधि जल से बालक को नहलाते हैं।
सुत मात-पिता को सौंप इन्द्र, तब ताण्डव नृत्य रचाते हैं।।४।। वैराग्य समय जब आता है, प्रभु बारह भावना भाते हैं। तब ब्रह्मलोक से लौकान्तिक आ, धन्य-धन्य यश गाते हैं।। विषयों का रस फीका पड़ता चेतनरस में ललचाते हैं। तब भेष दिगम्बर धार प्रभु संयम में चित्त लगाते हैं ।।५।। नवधा भक्ति से पड़गाहें, हे मुनिवर यहाँ पधारो तुम । हे गुरुवर अत्र-अत्र तिष्ठो निर्दोष अशन कर धारो तुम ।। है मन-वच-तन आहार शुद्ध अति भाव विशुद्ध हमारे हैं। जन्मान्तर का यह पुण्य फला, श्री मुनिवर आज पधारे हैं।।६।। सब दोष और अन्तराय रहित, गुरुवर ने जब आहार किया। देवों ने पंचाश्चर्य किये, मुनिवर का जय-जयकार किया ।। है धन्य-धन्य शुभ घड़ी आज, आंगन में सुरतरु आया है। अब चिदानन्द रसपान हेतु, मुनिवर ने चरण बढ़ाया है।।७।। प्रभु लीन हुए शुद्धातम में निज ध्यान अग्नि प्रगटाते हैं। क्षायिक श्रेणी आरूढ हुए, तब घाति चतुष्क नशाते हैं।। प्रगटाते दर्शन-ज्ञान वीर्य-सुख लोकालोक लखाते हैं। ॐकारमयी दिव्यध्वनि से प्रभु मुक्तिमार्ग बतलाते हैं।।८।। प्रभु तीजे शुक्लध्यान में चढ़ योगों पर रोक लगाते हैं। चौथे पाये में चढ़ प्रभुवर गुणस्थान चौदवाँ पाते हैं ।। अगले ही क्षण अशरीरी होकर सिद्धालय में जाते हैं। थिर रहे अनन्तानन्त काल कृतकृत्य दशा पा जाते हैं।।९।। है धन्य-धन्य वे कहान गुरु जिनवर महिमा बतलाते हैं। वे रंग राग से भिन्न चिदातम का संगीत सुनाते हैं।। हे भव्यजीव आओ सब जन, अब मोहभाव का त्याग करो। यह पंचकल्याणक उत्सव कर, अब आतम का कल्याण करो।।१०।।