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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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निर्ग्रन्थों का मार्ग.. निर्ग्रन्थों का मार्ग.. निर्ग्रन्थों का मार्ग हमको प्राणों से भी प्यारा है.......... दिगम्बर वेश न्यारा है..................निर्ग्रन्थों का मार्ग।।टेक।। शुद्धात्मा में ही, जब लीन होने को, किसी का मन मचलता है। तीन कषायों का, तब राग परिणति से, सहज ही टलता है।। वस्त्र का धागा..वस्त्र का धागा.., नहीं फिर उसने तन पर धारा है। दिगम्बर वेश न्यारा है...................निर्ग्रन्थों का मार्ग ।।१।। पंच-इन्द्रिय का, विस्तार नहीं जिसमें, वह देह ही परिग्रह है। तन में नहीं तन्मय, है दृष्टि में चिन्मय, शुद्धात्मा ही गृह है ।। पर्यायों से पार..., पर्यायों से पार, त्रिकाली ध्रुव का सदा सहारा है। दिगम्बर वेश न्यारा है...................निर्ग्रन्थों का मार्ग ।।२।। मूलगुण पालन, जिनका सहज जीवन, निरन्तर स्वसंवेदन। एक ध्रुव सामान्य, में ही सदा रमते, रत्नत्रय आभूषण ।। निर्विकल्प अनुभव, निर्विकल्प अनुभव से ही, जिनने निज को शारा है। दिगम्बर वेश न्यारा है...................निर्ग्रन्थों का मार्ग ।।३।।
आनन्द के झरने, झरते प्रदेशों में, ध्यान जब धरते हैं। मोह रिपु क्षण में, तब भस्म हो जाता, श्रेणी जब चढ़ते हैं।। अन्तर्मुहूरत में..अन्तर्मुहूरत में ही, जिनने अनन्त चतुष्ट धारा है। दिगम्बर वेश न्यारा है.....................निर्ग्रन्थों का मार्ग ।।४।।
आनन्द अवसर आयो... आनन्द अवसर आयो, मुनिवर दर्शन पायो, परम दिगम्बर संत पधारे जीवन धन्य बनायो-बनायो ।। पुण्य उदय है आज हमारे, ऋषभदेव मुनिराज पधारे। श्री मुनिवर के दर्शन करके शुद्ध हुए हैं भाव हमारे ।।
जीवन सफल बनायो...बनायो ।।१।।