________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव . मात्र दूसरे के कल्याण के लिए नहीं, मूलतः तो यह सब अपने कल्याण के लिए करना है। हमारे शुद्ध-सात्विक जीवन को देखकर यदि दूसरे भी कल्याण के मार्ग पर लग जावें तो बहुत अच्छी बात है; यदि न भी लगे, ते... दूसरों से क्या लेना-देना है? पर के कल्याण के विकल्प में भी अधिक उर अच्छी बात नहीं है। मूल बात तो अपने स्वयं के कल्याण करने की ही है। . __ अब अपना जीवन भी कितना शेष है? यह बहुमूल्य मानव जीवन यों ही जा रहा है। जो जी लिया, सो जी लिया; पर भविष्य की क्या गारंटी है? हो सकता है दश-बीस वर्ष और भी जी जावे, पर यह भी तो हो सकता है कि अगले क्षण ही यह क्षणभंगुर जीवन समाप्त हो जावे। अत: एक-एक क्षण कीमती है। कुछ नई उम्र के लोग सोच सकते हैं कि हम तो अभी बालक ही हैं, 'युवक ही हैं ; हमें तो अभी बहुत जीना है; पर भाई, इस मानव जीवन में युवकों की आयु का भी क्या भरोसा है? आज के संयोगों में तो यह अस्थिरता .. भी अधिक बढ़ गई लगती है। अत: बूढ़े-बच्चों, युवक-युवतियों सभा को आत्मकल्याण के कार्य में प्रवृत्त होना चाहिए। इन पंचकल्याणकों जैसे पावन अवसरों से भी यदि हम कुछ न सीख सके तो फिर ऐसे कौन से अवसर आवेंगे, जो हमें आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर करेंगे? अधिक क्या कहें, जिनके संसार-सागर का किनारा समीप आ गया होगा, वे इतने से ही समझ जावेंगे; पर अभी जिनका संसार बहुत बाकी है, उनसे कितना ही कहो, उन पर कुछ भी असर होने वाला नहीं ..... अत: अधिक प्रलाप से क्या लाभ है। सभी आत्मार्थीजन इस पंचकल्याणक प्रसंग से अपने कल्याण का: प्रशस्त करें . - इस मंगल भावना से इस पंचकल्याणक कथा से विर. लेता हूँ।