________________
58
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
___यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है कि राजा श्रेयांस को जातिस्मरण ७ माह पूर्व क्यों नहीं हो गया? यदि ७ माह पूर्व उन्हें जातिस्मरण हो जाता तो ऋषभदेव को इतने दिनों व्यर्थ ही निराहार न रहना पड़ता।
पर, भाई साहब क्या तुम इस बात को नहीं जानते कि समय के पहले और भाग्य से अधिक कभी किसी को कुछ नहीं मिलता। जब ऋषभदेव की आहार प्राप्ति की उपादानगत योग्यता पक गई तो आहार देने वालों को भी जातिस्मरण हो गया। इससे तो यही सिद्ध होता है कि जब अपनी अन्तर से तैयारी हो तो निमित्त तो हाजिर ही रहता है, पर जब हमारी पात्रता ही न पके तो निमित्त भी नहीं मिलते। उपादानगत योग्यता और निमित्तों का सहज ऐसा ही संयोग है। अतः निमित्तों को दोष देना ठीक नहीं है, अपनी पात्रता का विचार करना ही कल्याणकारी है।
मुनिराजों के २८ मूलगुणों में दो मूलगुण आहार से भी संबंधित हैं - (१) दिन में एक बार अल्प आहार लेना और (२) खड़े-खड़े हाथ में आहार लेना। जैसा कि छहढाला की निम्नांकित पंक्ति में कहा गया है - "इकबार दिन में लें आहार खड़े अलप निजपान में।" मुनिराज दिन में एक बार ही आहार लेते हैं, वह भी भरपेट नहीं, अल्पाहार ही लेते हैं और वह भी खड़े-खड़े अपने हाथ में ही। ___ ऐसा क्यों है, खड़े-खड़े ही क्यों? बैठकर शान्ति से दो रोटियाँ खा लेने में क्या हानि है? हाथ में ही क्यों, थाली में जीमने में भी क्या दिक्कत है? ___इसीप्रकार एक बार ही क्यों, बार-बार क्यों नहीं, अल्पाहार ही क्यों, भरपेट क्यों नहीं? यह भी कुछ प्रश्न हैं, जो लोगों के हृदय में उत्पन्न होते हैं। ___ वनवासी मुनिराज नगरवासी गृहस्थों की संगति से जितने अधिक बचे रहेंगे, उतनी ही अधिक आत्मसाधना कर सकेंगे। इसीकारण तो वे नगरवास