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________________ पहला दिन आरम्भ किया था। इससे सिद्ध होता है कि जैनदर्शन मात्र नर से नारायण बनाने वाला दर्शन नहीं, अपितु पशु से परमेश्वर बनाने वाला वीतरागी दर्शन है। पंचकल्याणक वे महान् क्रान्तिकारी घटनाएँ हैं, जो प्रायः प्रत्येक तीर्थंकर के जीवन में घटित होती हैं और उनके परमकल्याण का कारण बनती हैं। यद्यपि कतिपय तीर्थंकरों के जीवन में दो या तीन ही कल्याणक होते हैं, पर यह बात अपवाद के रूप में ही समझना चाहिए। ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त भरतक्षेत्र के सभी तीर्थंकरों के पाँचों ही कल्याणक हुए हैं, अतः मूर्तियों की प्रतिष्ठा के लिए पंचकल्याणक महोत्सव ही होते हैं, दो कल्याणक महोत्सव या तीन कल्याणक महोत्सव नहीं।। देश या विदेशों में विद्यमान जिनालयों में जितने भी जिनबिम्ब विराजमान हैं, वे सभी इन पंचकल्याणकों में ही प्रतिष्ठित हुए हैं और भविष्य में भी जितने जिनबिम्ब विराजमान होंगे, वे सब भी इसी विधि से विराजमान होंगे। इसप्रकार यह महोत्सव एक अत्यन्त आवश्यक महोत्सव है। इसका सर्वथा निषेध करना श्रमण संस्कृति के लिए घातक भी हो सकता है। __ हाँ, यह बात अवश्य है कि जहाँ पहले से ही अनेक जिनालय विद्यमान हैं, उनमें अनेकानेक जिनबिम्ब विराजमान हैं, वहाँ बिना आवश्यकता के मात्र अपने मान पोषण के लिए मन्दिर बनाना, उसमें जिनबिम्ब विराजमान करना, तदर्थ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव कराना अवश्य अनावश्यक है। ___इसप्रकार के उत्सवों को अवश्य हतोत्साहित किया जाना चाहिए, पर जहाँ जिनालय हों ही नहीं, वहाँ तो उनका बनाना अत्यन्त आवश्यक है, उनमें जिनबिम्बों का विराजमान करना भी जरूरी है और तदर्थ पंचकल्याणक भी आवश्यक है ही। क्या विदेशों में बन रहे मन्दिर भी अनावश्यक हैं ? पूरे काठियावाड़ में एक भी ढंग का दिगम्बर जिनमन्दिर नहीं था और आध्यात्मिकसत्पुरुष
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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