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________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव दर्शन, पूजन और भक्ति प्रतिदिन लाखों जैन भाई-बहिन करते हैं । लाखों लोग तो ऐसे हैं, जो उनके दर्शन बिना, उनकी पूजन बिना भोजन भी नहीं करते । 2 जिनमन्दिरों में विराजमान जिनबिम्बों का अपना एक महत्त्व है । वे जिनबिम्ब हमारी संस्कृति के प्रतीक ही नहीं, संरक्षक भी हैं । सम्पूर्ण देश में बिखरे हुए लाखों जिनबिम्ब हमारे समृद्ध अतीत के सबूत तो हैं ही, भारत हमारी मूल भूमि है, इसके भी सशक्त प्रमाण हैं । यह पाषाणों में उत्कीर्ण या धातुओं से ढले ये वीतरागी जिनबिम्ब (मूर्तियाँ) तबतक पूजने योग्य नहीं माने जाते, जबतक कि उनकी विधिपूर्वक प्रतिष्ठा नहीं हो जाती । इसी प्रतिष्ठाविधि को सम्पन्न करने के लिए जो महोत्सव होता है, उसे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव कहते हैं । यह पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया का महोत्सव है। इस महोत्सव में पंचकल्याणक सम्बन्धी क्रियाप्रक्रियाओं के माध्यम से आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया का प्रदर्शन होता है, विद्वानों के प्रवचनों के माध्यम से समागत श्रद्धालुओं को आत्मा से परमात्मा बनने की विधि बताई जाती है। विश्व के समस्त दर्शनों में जैनदर्शन ही एक ऐसा दर्शन है, जो यह कहता है कि प्रत्येक आत्मा स्वयं परमात्मा है । अपना यह आत्मा स्वभाव से तो परमात्मा है ही, यदि स्वयं को जाने, पहिचाने और स्वयं में ही जम जावे, रम जावे; तो प्रकट रूप से पर्याय में भी परमात्मा बन सकता है। हमारे चौबीसों ही तीर्थंकर अपनी पिछली पर्यायों में हमारे समान ही पामर पर्यायों में थे; पर उन्होंने स्वयं को जाना, पहिचाना, स्वयं का अनुभव किया; स्वयं में ही समा गये; परिणामस्वरूप तीर्थंकर बने, सर्वज्ञ हुए। भले ही इस प्रक्रिया के सम्पन्न करने में उन्हें दश- पाँच भव लग गए हों; पर उन्होंने अपने परमात्मस्वरूप को प्राप्त कर ही लिया । भगवान महावीर ने यह महान कार्य अपने दश भव पहले शेर की पर्याय में आरम्भ किया था और भगवान पार्श्वनाथ ने यह कार्य हाथी की पर्याय में
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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