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विषयानुक्रमणिका
प्रस्तावना पंचास्तिकाय परिशीलन .
पण्डित रतनचन्द भारिल्ल
पृष्ठ
IV-V
VI
VII VIII १-२८ २९-३६
क्र.
विवरण •समर्पण • प्रकाशकीय .परिशीलन : प्रयोजन और विषय • आत्मकथ्य •विषयानुक्रमणिका • पृष्ठभूमि • प्रस्तावना
• मंगलाचरण एवं ग्रन्थ प्रारंभ १. षड्द्रव्य पंचास्तिकाय गाथा १ से २६ २. जीव द्रव्यास्तिकाय गाथा २७ से ७३ ३. पुद्गल द्रव्यास्तिकाय गाथा ७४ से ८२ ४. धर्म द्रव्यास्तिकाय व अधर्मद्रव्यास्तिकाय गाथा ८३ से८९ ५. आकाश द्रव्यास्तिकाय गाथा ९० से ९६ ६. चूलिका गाथा ९७ से ९९ ७. काल द्रव्य गाथा १०० से १०२ ८. उपसंहार गाथा १०३ से १०४ ९. नवपदार्थ एवं मोक्षमार्ग प्रपंच गाथा १०५ से १०८ १०. जीव पदार्थ गाथा १०९ से १२३ ११. अजीव पदार्थ गाथा १२४ से १३० १२. पुण्य-पाप पदार्थ गाथा १३१ से १३४ १३. आस्रव पदार्थ गाथा १३५ से १४० १४. संवर पदार्थ गाथा १४१ से १४३ १५. निर्जरा पदार्थ गाथा १४४ से १४६ १६. बंध पदार्थ गाथा १४७ से १४९ १७. मोक्ष पदार्थ गाथा १५० से १५१ १८. ध्यान सामान्य गाथा १५२-१५३ १९. मोक्षमार्ग प्रपंच चूलिका गाथा १५४-१७३
४-११० १११-२६४ २६५-२९१ २९२-३०८ ३०९-३२२ ३२३-३२९ ३३०-३३५ ३३६-३४० ३४१-३५० ३५१-३८९ ३९०-३९९ ४००-४१० ४११-४२३ ४२४-४३० ४३१-४३८ ४३९-४४४ ४४५-४४८ ४४९-४५३ ४५४-५०८
अध्यात्म के प्रतिष्ठापक आचार्य कुन्दकुन्द का स्थान दिगम्बर आचार्य परम्परा में सर्वोपरि है। भगवान महावीर और गौतम गणधर के बाद समग्र आचार्य परम्परा में एकमात्र आचार्य कुन्दकुन्द का ही नामोल्लेखपूर्वक स्मरण किया गया है। परवर्ती ग्रन्थकारों ने आपको जिस श्रद्धा से स्मरण किया है, उससे भी यह पता चलता है कि दिगम्बर जैन परम्परा में कुन्दकुन्द का स्थान बेजोड़ है। निम्नांकित छन्द से यह बात अत्यन्त स्पष्ट है ह्र
मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतमोगणी।
मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलं ।। श्रवणबेलगोला के चन्द्रगिरि, विन्ध्यगिरि के शिलालेखों से; नन्दिसंघ पट्टावली एवं जैन शिलालेख संग्रह आदि में प्राप्त उल्लेखों से ज्ञात होता है कि आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व विक्रम की प्रथम शताब्दि में कौन्दकुन्दपुर (कर्नाटक) में जन्मे कुन्दकुन्द अखिल भारतवर्षीय ख्याति के दिग्गज आचार्य हो गये हैं। आचार्य कुन्दकुन्द को चारणऋद्धि प्राप्त थी तथा उनका प्रथम नाम पद्मनन्दी था। कौन्डकुन्दपुर के वासी होने से उनका कुन्दकुन्द नाम प्रचलित हुआ।
कहा जाता है कि एकबार आचार्य कुन्दकुन्द को बहुत गहराई से चिन्तन करने पर भी कोई विषय स्पष्ट समझ में नहीं आ रहा था, उसी चिन्तन में डूबे कुन्दकुन्द ने विदेहक्षेत्र में विद्यमान तीर्थंकर सीमन्धर स्वामी को परोक्ष नमन किया। उनके नमन के निमित्त से सीमन्धर स्वामी की दिव्यवाणी में सहज ही उनके लिए आशीर्वचन प्रस्फुटित हो गया। जिसे सुनकर वहाँ उपस्थित दो चारण ऋद्धिधारी मुनियों के मन में यह शंका हुई
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