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प्रकाशकीय प्रस्तुत ‘पंचास्तिकाय परिशीलन' मूर्धन्य विद्वान पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखा गया है। निःसंदेह यह कृति पाठकों के लिए अत्यधिक उपयोगी है; क्योंकि इस परिशीलन में अध्यात्म के प्रतिष्ठापक आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव के पंचास्तिकाय परमागम की अर्थ सहित मूल गाथाओं से लेकर आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजीस्वामी तक पंचास्तिकाय से सम्बन्धित सभी तात्विक विषयों का सारगर्भित चिन्तन प्रस्तुत किया गया है।
आचार्य श्री अमृतचन्द्र स्वामी की संस्कृत में लिखी समयव्याख्या टीका अपने आप में बेजोड़ है, अद्वितीय है। कविवर हीरानन्दजी के आंचलिक हिन्दी भाषा में रचित काव्य प्रसूनों ने तत्कालीन पाठकों को तो अपनी सुगंध से लाभान्वित किया ही होगा, आज भी उनके काव्यों की उपयोगिता असंदिग्ध है।
यद्यपि आचार्य श्री जयसेन स्वामी की संस्कृत टीका यहाँ नहीं दी गई है, तथापि आवश्यकतानुसार उनके मुख्य कथनों का उल्लेख भी यत्र-तत्र है।
प्रस्तुत परिशीलन के कर्ता पण्डित श्री रतनचन्दजी भारिल्ल अनेक लोकप्रिय कथाकृतियों के कुशल चितेरे तो हैं ही, गद्य निबन्ध शैली में तथा उपन्यास शैली में लिखित अनेक धार्मिक कृतियों के भी आप सफल लेखक हैं। छोटी-बड़ी ४९ पुस्तकें आपके द्वारा लिखी गईं हैं, उनकी लिस्ट पुस्तक के अन्त में दी गई है।
विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि आपने आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजीस्वामी के द्वारा समयसार परमागम पर १९वीं बार हुए गुजराती भाषा के व्याख्यानों को परिमार्जित हिन्दी भाषा में लगभग छह हजार पृष्ठों में ११ भागों में रूपान्तरित करके हिन्दी भाषाभाषी समयसार के पाठकों पर महान उपकार किया है। इनके सिवाय और भी अनेक कृतियों के गुजराती से हिन्दी में प्रामाणिक अनुवाद आपने किये हैं।
ज्ञातव्य है कि २ अक्टूबर २००५ में पण्डितजी के जीवन व कर्तृत्व पर प्रकाश डालने वाला एक ६०० पृष्ठीय वृहदाकार कलर्ड अभिनन्दन ग्रन्थ भी प्रकाशित हुआ है, जिसमें आपके कर्तृत्व एवं व्यक्तित्व की झलक अनेक मनीषी लेखकों तथा वर्तमान एवं भूतपूर्व विद्यार्थियों द्वारा दिखाई गई है। ___ आचार्य श्री विद्यानन्दजी के सान्निध्य में कुन्दकुन्द भारती नई दिल्ली में वर्तमान भारत की महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, जो उस समय राजस्थान की राज्यपाल थीं, उनके कर कमलों द्वारा एक लाख रुपये की राशि से सम्मानित किया गया था।
पण्डित श्री रतनचन्दजी के सम्मान में उक्त राशि अमेरिका प्रवासी श्री पवन जैन दिल्ली ने पण्डितजी के कर्तृत्व से प्रभावित होकर सहर्ष प्रदान की थी।
पण्डितजी ने उक्त एक लाख रुपये भेंट की गई राशि में अपनी ओर से और भी ५१,००१ (इक्यावन हजार एक सौ एक) मिलाकर एक पारमार्थिक ट्रस्ट की स्थापना करने की घोषणा कर दी थी, उनके पुत्र शुद्धात्मप्रकाश भारिल्ल ने उसमें प्रतिवर्ष ५०,००० रुपये मिलाकर उसके ब्याज से परमार्थ के काम करने का निश्चय किया है।
आप सन् १९७७ से अद्यतन जैनपथ प्रदर्शक (पाक्षिक) के आद्य सम्पादक हैं। अब तक लिखे गये आपके अधिकांश सम्पादकीय पुस्तकों के रूप में साहित्य की स्थाई निधि बन गये हैं।
इसप्रकार पण्डित श्री रतनचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखित अधिकांश साहित्य अनेक संस्करणों में तथा हिन्दी, मराठी, गुजराती और कन्नड़ भाषाओं में भी प्रकाशित होकर जन-जन तक पहुँच चुका है।
अन्त में उन सभी महानुभावों को अनेकशः धन्यवाद है, जिन्होंने इस संस्करण के मूल्य कम करने में अपना आर्थिक योगदान दिया है।
श्रीयुत् अखिल बंसल एवं कैलाश चन्द्र शर्मा ने इस पुस्तक के प्रकाशन एवं टंकण में बहुत परिश्रम किया है। एतदर्थ वे भी धन्यवाद के पात्र हैं।
ह्र ब्र. यशपाल जैन, एम.ए.
प्रकाशन मंत्री पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर
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