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________________ २ हजार प्रथम संस्करण : (अक्टूबर, २०१०) जैनपथप्रदर्शक (सम्पादकीय) : ___ योग समर्पण ३ हजार ५०० ५ हजार ५०० विक्रय मूल्य : ५० रुपये लागत मूल्य : ७५ रुपये mmm ०१. टाईपसैटिंग त्रिमूर्ति कंप्यूटर्स ए-४, बापूनगर, जयपुर प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करनेवाले दातारों की सूची १. श्री जिगनेश पारीख, मुम्बई १०,००० २. श्री वीरेन्द्रकुमार राजेशकुमार विजयकुमारजी जैन हस्ते हरसौरा परिवार, कोटा ३. श्री सचिन जैन, अकलूज ३,५०० ४. श्रीमती अभिलाषा शिखरचन्दजी जैन, जयपुर ३,००० ५. श्री महावीरप्रसादजी जैन, दौसा ६. श्री अनिल मोतीलालजी दोशी, भिगवन ७. श्री कैलाश श्रीपालजी दोशी, अकलूज ८. श्री विशाल विलासजी दोशी, नातेपुते ३,००० ९. श्रीमती नीतू जैन ध.प. विशाल जैन, जयपुर १,५०० १०. श्री कन्हैयालालजी दुग्गड़, दिल्ली १,१०० ११. श्रीमती कान्ताबेन ध.प. लालचन्दजी जैन, चाकसू १,१०० १२. श्रीमती कमलाबाई, केशवराय पाटन १,००० १३. श्री विमलकुमार प्रसंगकुमारजी जैन, छिन्दवाड़ा १,००० १४. श्री गम्भीरमलजी जैन, अहमदाबाद १५. श्री माणकचन्द जैन योगेशजी जैन टोडरका, जयपुर १,००० १६. श्री विनोद जैन माणकजी जैन, मण्डावरा १,००० १७. श्रीमती वर्षा जैन, देवरी १,००० १८. श्रीमती शशि जैन, शिवपुरी १,००० १९. श्रीमती विद्यादेवी ध.प. जयकुमारजी बंसल, चन्देरी २०. श्री के.सी. जैन, जयपुर २१. श्री कैलाशचन्दजी जैन, अलवर २२. श्रीमती शोभना सालगिया, मुम्बई २३. पण्डित सिद्धार्थकुमारजी दोशी, रतलाम २४. श्री प्रेमचन्दजी जैन, अजमेर २५. श्रीमती लाड़बाई ध.प. पूरणचन्दजी जैन, बून्दी २०० कुल राशि ४७,००० प्रस्तुत परिशीलन लिखने के प्रेरणा स्रोत आगरा के मूल निवासी एवं बम्बई प्रवासी श्रीयुत् सौभाग्यमलजी पाटनी थे। उन्होंने मुझसे अनेक बार कहा था कि ह्र 'समयसार और प्रवचनसार पर तो डॉ. साहब श्री हुकमचन्दजी भारिल्ल अनुशीलन लिख ही रहे हैं। पंचास्तिकाय ग्रन्थ भी एक महान ग्रन्थ है, मेरी भावना है कि इसका परिशीलन आप करें। उनके अनुरोध से मैंने कार्य प्रारंभ भी कर दिया। मैंने सोचा यह था कि ह्र 'इस निमित्त से मेरा भी इस महान ग्रन्थ का गहन अध्ययन हो जायेगा और इतने काल मेरा उपयोग भी शुभ रहेगा।' ह्र ऐसा सोचकर मैंने यह परिशीलन लिखना प्रारंभ तो कर दिया, परन्तु दैवयोग से मैं ५० गाथाओं का परिशीलन ही कर पाया था कि मैं स्वयं अस्वस्थ हो गया और इसी बीच श्री सौभाग्यमलजी पाटनी दिवंगत हो गये । स्वस्थ होने पर उस समय गुरुदेवश्री के प्रवचनों का गुजराती मैटर उपलब्ध न हो पाने के कारण मैंने अपनी नवीन कृति 'चलतेफिरते सिद्धों से गुरु' लिखना प्रारंभ कर दिया, इस कारण यह कृति कुछ लेट हो गई। जब मैं फ्री हुआ और स्वयं को पूर्ण स्वस्थ अनुभव करने लगा तो मुझे विकल्प आया कि क्यों न पंचास्तिकाय परिशीलन के अधूरे काम को पूरा किया जाये। __यद्यपि श्री सौभाग्यमलजी पाटनी हमारे बीच नहीं रहे; किन्तु अभी वे निश्चय ही स्वर्ग में होंगे, उन्हें वहाँ अवधिज्ञान से यह जानकर प्रसन्नता होती होगी कि 'मैंने उनकी भावना के अनुसार पंचास्तिकाय का परिशीलन पूर्ण कर लिया है। परोक्ष रूप में ही सही, परन्तु इस कृति को मैं उन्हें ही समर्पित करता हूँ और कामना करता हूँ कि उन्हें अल्पकाल में ही अनन्त सुख की प्राप्ति हो। ह्न पण्डित रतनचन्द भारिल्ल मुद्रक : श्री प्रिन्टर्स मालवीयनगर, जयपुर (2)
SR No.009466
Book TitlePanchastikay Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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