________________
अजीव अधिकार
(उपेन्द्रवज्रा) पदार्थरत्नाभरणं मुमुक्षोः कृतं मया कंठविभूषणार्थम् । अनेन धीमान् व्यवहारमार्ग बुद्ध्वा पुनर्बोधति शुद्धमार्गम् ।।५२।। पोग्गलदव्वं मुत्तं मुत्तिविरहिया हवंति सेसाणि । चेदणभावो जीवो चेदणगुणवज्जिया सेसा ।।३७।। पुद्गलद्रव्यं मूर्तं मूर्तिविरहितानि भवन्ति शेषाणि ।
चैतन्यभावो जीव: चैतन्यगुणवर्जितानि शेषाणि ।।३७।। इसप्रकार इन गाथाओं में मात्र यही कहा गया है कि यद्यपि पुद्गल परमाणु एकप्रदेशी ही है; तथापि स्कंध की अपेक्षा पुद्गल के संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेश माने गये हैं।
धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य और एक जीवद्रव्य ह्न इन सबमें प्रत्येक के असंख्यात प्रदेश हैं और लोकाकाश के भी धर्म, अधर्म और एक जीव के बराबर असंख्यप्रदेश ही हैं। अलोकाकाश के अनंत प्रदेश हैं; परन्तु कालद्रव्य एकप्रदेशी ही है। यही कारण है कि उसे अस्तिकायों में शामिल नहीं किया गया है।।३५-३६।। ___टीका के उपरान्त टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव एक छन्द लिखते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र
( हरिगीत ) मुमुक्षुओं के कण्ठ की शोभा बढाने के लिए। षट् द्रव्यरूपी रत्नों का मैंने बनाया आभरण। अरे इससे जानकर व्यवहारपथ को विज्ञजन |
परमार्थ को भी जानते हैं जान लो हे भव्यजन ||२|| पदार्थरूपी रत्नों का आभरण (आभूषण-गहना) मुमुक्षुओं के कण्ठ की शोभा बढ़ाने के लिए मैंने बनाया है। इसके द्वारा विज्ञजन व्यवहारमार्ग को जानकर शुद्धमार्ग को जानते हैं।
उक्त छन्द में मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव कहते हैं कि मैंने यह पदार्थों के स्वरूप को बतानेवाला रत्नमयी कण्ठाभरण (हार-माला) मुमुक्षुओं के कण्ठ की शोभा बढ़ाने के लिए बनाया है। जो मुमुक्षु भाई इसे कण्ठ में धारण करेंगे, कण्ठस्थ करेंगे, भाव समझ कर कण्ठस्थ याद कर लेंगे; वे मुमुक्षु व्यवहार एवं निश्चय मार्ग को समझ कर, उस पर चलकर अनन्त अतीन्द्रिय आनन्द प्राप्त करेंगे।।५।।