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________________ कुछ प्रश्नोत्तर जो सम्यग्दर्शनरूप कार्य है, उसका उपादान तो भगवान आत्मा या उसका श्रद्धागुण ही है और निमित्त सत्पुरुष का त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा का स्वरूप बतानेवाला उपदेश है। 35 सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के कारणों के रूप में जिनागम में जो पाँच लब्धियों की चर्चा आती है; उनमें एक देशनालब्धि भी है। वह देशनालब्धि आत्मा के स्वरूप को स्पष्ट करनेवाली सत्पुरुष की वाणी के रूप में ही उपलब्ध होती है। उसे सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में बहिरंग निमित्त के रूप में स्वीकार किया गया है; क्योंकि अन्तरंग निमित्त तो दर्शनमोह का क्षय, क्षयोपशम या उपशम होता है । निमित्त और उपादान तो कारणों के प्रकार हैं; अतः वे तो प्रत्येक कार्य पर घटित होते हैं । जिनागम में आचार्यों ने घट और कुम्हार के उदाहरण से निमित्त नैमित्तिक संबंध को समझाने का प्रयास किया है। पर वह तो एक उदाहरण मात्र है, वस्तुतः तो प्रत्येक कार्य के अपने-अपने जुदे - जुदे उपादान - निमित्त होते हैं । कार्योत्पत्ति की प्रक्रिया समझने के लिये इन दोनों को ही प्रत्येक कार्य पर घटित करके देखना चाहिये । पर यहाँ अध्यात्म का प्रकरण है; अतः सम्यग्दर्शनरूप कार्य पर उपादान - निमित्त को घटित किया रहा है। यह विचार किया जा रहा है कि यदि हमें सम्यग्दर्शनरूप कार्य की उपलब्धि करना है, सम्यग्दर्शन प्राप्त करना है तो क्या करना चाहिये । - इस सन्दर्भ में यह स्पष्ट किया जा रहा है कि सम्यग्दर्शनरूप कार्य का कारण जो त्रिकाली उपादानरूप ध्रुव निज भगवान आत्मा है, उसके आश्रय से ही मिथ्यादर्शन पर्याय का अभाव करती हुई सम्यग्दर्शन पर्याय स्वकाल में प्रगट होती है । जब सम्यग्दर्शनरूप पर्याय प्रगट होती है, तब मिथ्यात्व नामक कर्म का क्षय, क्षयोपशम या उपशम रूप अभाव नियम से होता है । तथा उसके पूर्व सम्यग्दर्शन प्राप्त करनेवाले उस आत्मा को किसी ज्ञानी सत्पुरुष से भगवान आत्मा का स्वरूप स्पष्ट करनेवाले उपदेश का लाभ भी अवश्य प्राप्त होता है ।
SR No.009462
Book TitleNimittopadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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