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निमित्तोपादान
जिन्हें त्रिकाली सत् का परिचय नहीं, वे सत्पुरुष नहीं; उनकी संगति भी सत्संगति नहीं है।
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मुक्ति के अभिलाषी आत्मार्थी को सत्संगति तो अवश्य करना चाहिये, पर सत्संगति का सच्चा स्वरूप समझकर सत्पुरुष की पहिचान कर ही उसके प्रति समर्पित होना चाहिये; अन्यथा भ्रमित हो जाने की संभावना भी कम नहीं है।
सत्पुरुष की सच्ची पहिचान ही यही है कि जो त्रिकाली ध्रुवरूप निज परमात्मा का स्वरूप बताये और उसी के शरण में जाने की प्रेरणा दे, वही सत्पुरुष है। दुनियादारी में उलझानेवाले, जगत के प्रपंच में फंसानेवाले पुरुष कितने ही सज्जन क्यों न हों, सत्पुरुष नहीं हैं इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिये ।
इस बात का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि हम सत्संगति के नाम पर असत्संगति में ही न पड़े रहें; अन्यथा यह अत्यधिक मूल्यवान मानव जीवन यों ही चला जायेगा, भव का अन्त नहीं आवेगा । भव का अन्त लाना हो तो निमित्ताधीन दृष्टि छोड़कर त्रिकाली उपादानरूप निज स्वभाव का आश्रय लो और उसका स्वरूप समझानेवाले, उसी में जम जाने और रम जाने की प्रेरणा देनेवाले सत्पुरुष की संगति करो, समागम करो, शरण में जावो; यही एक मार्ग है, शेष सब उन्मार्ग हैं |
(११) प्रश्न: आप तो कह रहे हैं कि निज भगवान आत्मा का स्वरूप बतानेवाले सत्पुरुष ही एकमात्र निमित्त हैं, पर हमने तो सुना है कि कुम्हार भी निमित्त होता है ?
उत्तर : तुमने ठीक ही सुना है; क्योंकि कुम्हार भी निमित्त तो होता ही है, पर किस कार्य का? मिट्टी के घड़े बनने में कुम्हार निमित्त होता है । घड़ा एक कार्य है और उसका उपादानकारण मिट्टी है और निमित्तकारण कुम्हार – यह बात तो आरम्भ में ही स्पष्ट की जा चुकी है। पर यहाँ तो सम्यग्दर्शनरूप कार्य की बात चल रही है। मोक्षमहल की प्रथमसीढ़ीरूप