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अध्यात्म के नय
व्यवहारनय : भेद-प्रभेद
१.असदभूत व्यवहारनय २. सद्भूत व्यवहारनय
असद्भूत और सद्भूत - दोनों व्यवहारनय भी दो-दो प्रकार के होते हैं -
(i) उपचरित असद्भूतव्यवहारनय । (ii) अनुपचरित असतव्यवहारनय। (iii) उपचरित सद्भूतव्यवहारनय । (iv) अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय ।
इसप्रकार व्यवहारनय चार प्रकार का हो गया। इनमें से उपचरित सद्भूतव्यवहारनय को अशुद्ध सद्भूतव्यवहारनय और अनुपचरित सद्भूतव्यवहारनय को शुद्ध सद्भूतव्यवहारनय भी कहा जाता है।' व्यवहारनय के चारों भेदों को निम्न चार्ट द्वारा समझा जा सकता है।
व्यवहारनय
अभूतार्थ होने के कारण ही व्यवहारनय निषेध्य है। व्यवहारनय के निषेध के बाद निश्चयनय का पक्ष (विकल्प) भी विलय हो जाता है; क्योंकि नयों का प्रयोग विकल्पात्मक भूमिका में तत्त्वों का निर्णय करने के लिए ही होता है, आत्माराधना के समय नहीं। अनुभव के काल में तो नय संबंधी सभी विकल्प विलय हो जाते हैं।
इसप्रकार हम देखते हैं कि जब तक नय विकल्प चलता रहता है, तब तक आत्मा परोक्ष ही रहता है, वह प्रत्यक्षानुभूति का विषय नहीं बन पाता; क्योंकि प्रत्यक्षानुभूति नय पक्षातीत होती है।
यहाँ विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि चूँकि निश्चयनय के तो मात्र पक्ष या विकल्प को छोड़ना है, उसके विषयभूत अर्थ को तो ग्रहण करना है और व्यवहारनय का मात्र पक्ष ही नहीं, विषयभूत अर्थ भी छोड़ने योग्य है। अतः दोनों नय समानरूप से उपादेय नहीं है।
विभिन्न नाम - निश्चयनय को भूतार्थनय के अतिरिक्त शुद्धनय, परमशुद्धनय, परमार्थनय भी कहा जाता है।
चूँकि सामान्य शुद्धभावरूप होता है, परमभावरूप होता है, परम अर्थ (परमार्थ) है, अतः इन्हें विषय बनाने वाले निश्चयनय को शुद्धनय, परमशुद्धनय, परमार्थनय भी कहा जाता है।
व्यवहारनय : भेद-प्रभेद व्यवहारनय सामान्य-विशेषात्मक वस्तु के विशेष अंश को विषय बनाता है। विशेष अनेक प्रकार के होते हैं, अतः उनको विषय बनाने वाला व्यवहारनय अनेक प्रकार का हो सकता है। किन्तु व्यवहारनय 'एक अखण्ड वस्तु में भेद करके तथा दो भिन्न वस्तुओं में अभेद करके वस्तुस्वरूप को स्पष्ट करता है' - उसकी इस विशेषता को ध्यान में रखकर उसके दो भेद किये गये हैं - १. परमभावप्रकाशक नयचक्र, पृष्ठ-१११
असद्भूत व्यवहारनय
सद्भूतव्यवहारनय
उपचरित असद्भूतव्यवहारनय
अनुपचरित असद्भूतव्यवहारनय
उपचरित सद्भूतव्यवहारनय
अनुपचरित सद्भूतव्यवहारनय या अशुद्ध सद्भूतव्यवहारनय
शुद्ध सद्भूतव्यवहारनय उक्त भेदों में हम देखते हैं कि 'उपचार' शब्द का प्रयोग असद्भूत व्यवहारनय के साथ-साथ सद्भूतव्यवहारनय के साथ भी किया गया है। इसी के आधार पर सद्भूतव्यवहारनय के उपचरितसद्भूत व्यवहारनय और अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय - ऐसे दो भेद किए गए हैं। तथापि वास्तविक उपचार तो असद्भूत व्यवहारनय में ही होता है, क्योंकि इसमें गुणभेदादि भेद उपचरित नहीं, वास्तविक हैं।' १. परमभावप्रकाशक नयचक्र पृष्ठ-११३ २. वही, पृष्ठ-१४३,
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