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मोक्षमार्गप्रकाशक का सार हो जायेगी। यह किसी देश या समाज के लिये गौरव की बात नहीं है। इसमें सत्य की खोज का रास्ता ही बन्द हो जाने का खतरा है। ___ यदि सभी समान हैं तो फिर उक्त दर्शनों में परस्पर विरुद्ध कथन क्यों पाये जाते हैं ? कहा गया है कि ह्न
कपिलो यदि सर्वज्ञः बुद्धो नेति का प्रमा? बुद्धो यदि सर्वज्ञः कपिलो नेति का प्रमा ?
तावुभौ यदि सर्वज्ञौ मतभेदः कथं तयोः ।। यदि कपिल सर्वज्ञ हैं तो इस बात के क्या प्रमाण हैं कि बुद्ध सर्वज्ञ नहीं हैं। इसीप्रकार बुद्ध यदि सर्वज्ञ हैं तो इस बात के क्या प्रमाण हैं कि कपिल सर्वज्ञ नहीं है। यदि वे दोनों ही सर्वज्ञ हैं तो उन दोनों में मतभेद क्यों है ? इसीप्रकार यह भी कहा जा सकता है कि यदि सभी दर्शन समान हैं तो फिर ये दर्शन अनेक क्यों हैं ?
यद्यपि यह हो सकता है कि कुछ दर्शनों में कतिपय बातों में समानता हो. पर कुछ बातों की समानता के आधार पर उन्हें एक नहीं माना जा सकता। जितने भी ईश्वरवादी दर्शन हैं, उनमें ईश्वर को मानने संबंधी समानता तो होगी ही; पर अन्य बातों में जमीन-आसमान का अन्तर हो सकता है। इसीप्रकार जैन, बौद्ध और चार्वाक अनीश्वरवादी दर्शन हैं। पर उनमें भी अनेक बातों में महान अन्तर है। बौद्ध क्षणिकवादी हैं, पर जैन कथंचित् क्षणिक और कथंचित् नित्य माननेवाले होने से स्याद्वादी हैं। चार्वाक भोगवादी हैं, पर जैनदर्शन त्याग में भरोसा रखता है।
जैनदर्शन की जैनेतर दर्शनों से तुलना करते हुए पण्डित टोडरमलजी लिखते हैं कि जैनदर्शन में वीतरागता को धर्म कहा है और अन्य अनेक दर्शनों में रागभाव (शुभराग) में धर्म बताया गया है। जैनदर्शन कहता है कि होता स्वयं जगत परिणाम पर ईश्वरवादी कहते हैं कि इस जगत की रचना सर्वशक्तिमान ईश्वर ने की है।
ये दार्शनिक मुद्दे हैं, जिनमें मतभेद हैं; पर अहिंसा, सत्य, अस्तेय ह्र
सातवाँ प्रवचन ये सदाचार संबंधी बातें हैं; जो सभी में एक जैसी पायी जाती हैं; क्योंकि हिंसा, झूठ, चोरी को कौन भला कह सकता है ?
हिंसा, झूठ, चोरी को तो सरकार भी बुरा कहती है। यदि आप ये कार्य करेंगे तो सरकार आपको रोकेगी, शक्ति से रोकेगी।
सदाचार संबंधी एकता के आधार पर दर्शनों को एक नहीं माना जा सकता। दर्शन और धर्म हमारी निधि है, हमारी संस्कृति के अंग हैं, हमारी विकसित सभ्यता के प्रमाण हैं। इनकी उपेक्षा करके हम अपना सब कुछ खो देंगे। ___दर्शनों की विभिन्नता हमारी संस्कृति के गुलदस्ते हैं, हमारी सहिष्णु सभ्यता के जीवन्त प्रमाण हैं, विभिन्नता में एकता और एकता में विभिन्नता भारतीय मिट्टी की सुगंध है। इसे नष्ट करके हम नहीं बच सकते । देश का विकास, गरीबों का उद्धार आदि सुनहरे नारे तो सभी राजनैतिक पार्टियाँ देती हैं, पर उनकी मूल विचारधाराओं में भारी अन्तर देखने में आता है; अन्यथा ये वामपंथी-दक्षिणपंथी एक क्यों नहीं हो जाते?
जब वामपंथी और दक्षिणपंथी एक नहीं हो सकते हैं तो सभी दर्शन एक कैसे हो सकते हैं ? क्या राजनैतिक विचारधाराओं की विभिन्नता देश में कम झगड़े कराती है? झगड़ा मिटाने के लिए पहले उन्हें एक कर दीजिये, फिर दर्शनों के बारे में सोचना।
चुनाव भाषणों में देश की एकता के लिए यह क्यों नहीं कहा जाता कि सभी पार्टियाँ एक ही हैं। क्योंकि सभी देश का विकास चाहती हैं, सभी गरीबों का उद्धार करना चाहती हैं। यदि उन्हें इस आधार पर एक नहीं किया जा सकता तो फिर दर्शनों को एक कैसे किया जा सकता है ?
एक भी राजनैतिक पार्टी यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि वह चुनाव प्रचार में यह कहे कि हम सब एक हैं; क्योंकि हम सभी आपकी भलाई चाहते हैं। वहाँ तो सभी अपनी रीति-नीति कार्यप्रणाली की