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धर्म ही वह कल्पतरु है नहीं जिसमें याचना। धर्म ही चिन्तामणी है नहीं जिसमें चाहना। धर्मतरु से याचना बिन पूर्ण होती कामना। धर्म चिन्तामणी है शुद्धातमा की साधना॥
शुद्धातमा की साधना अध्यात्म का आधार है। शुद्धातमा की भावना ही भावना का सार है। वैराग्यजननी भावना का एक ही आधार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है।
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