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१२. धर्मभावना
धर्म है।
धर्म है ॥
निज आतमा को जानना पहिचानना ही निज आतमा की साधना आराधना ही शुद्धातमा की साधना आराधना का मर्म निज आतमा की ओर बढ़ती भावना ही धर्म
है।
है ॥
के ।
काम के ॥
बस नाम
कामधेनु कल्पतरु संकटहरण रतन चिन्तामणी भी हैं चाह बिन किस भोगसामग्री मिले अनिवार्य है पर है व्यर्थ ही इन कल्पतरु चिन्तामणी की चाहना ॥
याचना ।
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