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४. एकत्वभावना
आनन्द का रसकन्द सागर शान्ति का निज आतमा । सब द्रव्य जड़ पर ज्ञान का घनपिण्ड केवल आतमा ॥ जीवन-मरण सुख-दुख सभी भोगे अकेला आतमा । शिव-स्वर्ग नर्क - निगोद में जावे आतमा ॥
अकेला
बहिरातमा ।
आतमा ॥
आतमा । परमातमा ॥
सदा
इस सत्य से अनभिज्ञ ही रहते पहिचानते निजतत्त्व जो वे ही विवेकी निज आतमा को जानकर निज में जमे जो
वे भव्यजन बन
जायेंगे पर्याय में
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