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आवे
नहीं ।
पावे
नहीं ॥
मंथन करे दिन-रात जल घृत हाथ में रज-रेत पेले रात-दिन पर तेल ज्यों सद्भाग्य बिन ज्यों संपदा मिलती नहीं व्यापार में । निज आतमा के भान बिन त्यों सुख नहीं संसार में ||
संसार है पर्याय में निज आतमा ध्रुवधाम है। संसार संकटमय संकटमय परन्तु आतमा सुखधाम है ॥ सुखधाम से जो विमुख वह पर्याय ही संसार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना की सार है ॥
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