________________
जिनधर्म-विवेचन
अस्तित्वगुण को स्वीकार करते ही हमारा मरण-भय सदा के लिए निकल जाता है; क्योंकि अस्तित्वगुण को मानने पर हमें अपने अमरत्व का पक्का निर्णय हो जाता है।
१३२
हमारी लौकिक में बोलचाल की भाषा से भी जीव का अमरत्व स्पष्ट होता है । जैसे, हम दिन-रात बोलते हैं कि 'अमुक व्यक्ति मर गया' या 'गाय मर गई' और उसी समय हम कहते हैं कि 'जीव तो चला गया, मिट्टी यहीं पड़ी रह गई ;' इससे जीव का अमरत्व सिद्ध होता है। वास्तव
तो अनादि-अनन्त है, जन्म-मरण से रहित है। फिर मुझे मरण कहाँ ? इसप्रकार मरण का भय सहज ही निकल जाता है।
२. मैं किसी की रक्षा नहीं कर सकता और न मेरी कोई रक्षा करने समर्थ है तथा मैं किसी को मार नहीं सकता और न कोई मुझे मार सकता है - ऐसा विचार करने से अरक्षा का भय भाग जाता है।
कोई धनवान हो या दरिद्री, रोगी हो अथवा निरोगी, समाज में प्रसिद्ध हो या अप्रसिद्ध; लेकिन तत्त्वज्ञान से रहित मनुष्यों को संकट काल
तथा विशेषतया बुढ़ापे के समय मेरी सेवा कौन करेगा? मुझे सुरक्षित कौन रखेगा ? - ऐसे विचार आते हैं। ऐसे व्यक्तियों को अस्तित्वगुण मानों वरदान ही है; क्योंकि जीवद्रव्य ही नहीं, अपितु सभी द्रव्य अनादिकाल से मात्र अस्तित्वगुण के कारण ही परम सुरक्षित हैं। अनादि से आज पर्यन्त संरक्षण की चिन्ता से व्यर्थ ही भयभीत /सन्त्रस्त जीव भी चाहे माने अथवा न माने, समझें या न समझें, पर वे सभी अस्तित्वगुणरूपी अभेद्य कवच से सदैव अत्यन्त सुरक्षित हैं।
जीव अथवा पुद्गल को अनेक लोगों ने नष्ट करने का प्रयास करके पाप ही कमाया है; किन्तु कोई उन्हें नष्ट नहीं कर पाया है। हाँ, पर्याय में कुछ बाधा या दुःख पहुँचाने के प्रयास से सामनेवाले में जो कुछ अच्छाबुरा परिवर्तन होता हुआ देखने में आता है, वह पर्याय अपेक्षा सत्य होने पर भी द्रव्य की अनादिकालीन सत्ता में / अस्तित्व में कुछ भी बदलाव नहीं होता है।
(67)
अस्तित्वगुण - विवेचन
१३३
१५०. शंका - बड़े-बड़े राजनेताओं की हत्या करके उनका अस्तित्व मिटाया जाता है, यह हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं; इसलिए आपकी बात हमें सत्यरूप प्रतीत नहीं होती; अतः हम क्या समझें?
समाधान – आपकी बात पर्याय अपेक्षा से तो सत्य है; क्योंकि जिस नेता आदि को लेकर मनुष्य को तीव्र द्वेष होता है और उस नेता व्यक्ति की उस पर्यायमात्र को नाश करने में वह निमित्त होता है । जैसे, श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या करने से उनके प्रधानमन्त्रीत्व पद एवं उनकी स्त्री-पर्यायरूप मनुष्य अवस्था का नाश हुआ है; किन्तु श्रीमती इन्दिरा गांधी नामरूप स्त्री पर्याय का जिस समय नाश हुआ है, उसी समय उनका जीव क्या नष्ट हो गया है या उस जीव ने अन्यत्र कहीं जाकर जन्म ले लिया है?
इस प्रश्न पर यदि विचार करते हैं तो अस्तित्वगुण के कारण उत्तर यही मिलता है कि उस जीव ने किसी दूसरी जगह जाकर जन्म ले ही लिया है। अब आप ही बताइए कि 'जीवद्रव्य' सुरक्षित है या नहीं? अरे! जीवद्रव्य की सुरक्षा में तो कभी कुछ आँच आती ही नहीं है । यहाँ पर्यायदृष्टि से भी उस कार्य के निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध को अवश्य बताया जा रहा है, लेकिन यहाँ उन दुष्कृत्यों, हत्या, हिंसा आदि का समर्थन नहीं किया जा रहा है।
३. अस्तित्वगुण के कारण से पुनर्जन्म पर श्रद्धान होता है। प्रत्येक जीव अनादिकाल से विश्व में है और अनन्तकाल तक रहनेवाला भी है। मैं भी अनादिकाल से हूँ और अनन्तकाल तक रहूँगा । इसका अर्थ यह हुआ कि मैं मनुष्यरूप से जन्म लेने के पूर्व भी किसी अन्य अवस्था में था और अनन्त भविष्य में भी रहूँगा - ऐसा पक्का श्रद्धान होता है।
वर्तमानकाल में पुनर्जन्म की अनेक घटनाएँ सुनने को मिलती है। पुनर्जन्म मानना अन्धश्रद्धा नहीं है - यह विषय भी अत्यन्त स्पष्ट होता है। पुनर्जन्म के विषय को अनेक आचार्यों ने प्रथमानुयोग के ग्रन्थों में अपनी असीम अनुकम्पा से पात्र जीवों को समझाया है; अतः हमें प्रथमानुयोग के शास्त्र भी पढ़ना चाहिए।