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सम्पादकीय
अपनी बात जिनधर्म-विवेचन पढ़ने के पहले मैं पाठकों से कुछ कहना चाहता हूँ - इस कृति में विषय के प्रतिपादन में मैंने अनेक स्थान पर शास्त्रों के आधार दिये हैं। शास्त्रों का आधार देते समय जिस मूल प्राकृत-संस्कृत भाषा में शास्त्र लिखे हैं, उनके हिन्दी अनुवाद का उपयोग ही किया गया है। यदि कहीं-कहीं पर प्राकृत-संस्कृत का उपयोग किया भी गया है तो उसका हिन्दी अनुवाद भी दिया है। ___अभिप्राय यह रहा है कि पाठकों में प्राकृत-संस्कृत भाषा को जानने वाले तो बहुत कम लोग हैं; अतः हिन्दी अनुवाद तो देना आवश्यक ही है।
यद्यपि, इस कृति में विश्व एवं द्रव्य-गुण-पर्याय के साथ-साथ सप्त तत्त्व, अहिंसा, हिंसा के भेद, देव-शास्त्र-गुरु - इन विषयों का विवेचन भी देना चाहिए था; तथापि ये विषय पूर्णरूप से अभी तैयार नहीं है; इसलिए जिनधर्म-विवेचन (पूर्वार्द्ध) के नाम से यह कृति पाठकों के कर-कमलों में देने का प्रयास किया है। शेष विषय, यथाशीघ्र उत्तरार्द्ध के रूप में प्रकाशित करने का मानस है। __मैं डॉ. राकेश जैन शास्त्री, नागपुर का विशेष आभार व्यक्त करना चाहता हूँ; क्योंकि उनसे यदि यह कृति सम्पादित नहीं होती तो इतनी व्यवस्थित नहीं बनती। मेरी मातृभाषा तो कन्नड़ है और पढ़ाई, मराठी भाषा में हुई है। इस कारण हिन्दी भाषा में कुछ कमियाँ रहना स्वाभाविक है। उन कमियों को दूर करने का कार्य डॉ. राकेश जैन ने किया है। मैं भविष्य में भी उनसे सहयोग की अपेक्षा रखता हूँ। ___ जिनधर्म-विवेचन पढ़ने के बाद पाठक अपना अभिमत मुझे लिखेंगे तो मुझे उनके अभिप्राय को जानकर, जिनवाणी-सेवा का यह कार्य अधिक शुद्ध/निर्मल बनाने में अवश्य मदद मिलेगी; अतः उनसे उनके अभिमत लिखने का सानुरोध निवेदन है।
- ब्र. यशपाल जैन, एम.ए.
इस पुस्तक का सम्पादन कार्य मेरे हाथ में कैसे आया? उसका संक्षिप्त विवरण देने का यहाँ मन है - मैं अपने निजी कार्य से जयपुर गया था, उस समय आदरणीय बाल ब्र. यशपालजी ने उनकी इस रचना 'जिनधर्म-विवेचन' के कुछ पृष्ठ मुझे पढ़ने को दिए। मैंने अपनी ओर से उसमें कुछ संशोधन सुझाए, वे संशोधन उन्हें बहुत पसन्द आए; अतः उन्होंने मुझे सम्पूर्ण पुस्तक का संशोधन करने के लिए कहा । यद्यपि मैंने अपनी व्यस्तता दर्शाई, फिर भी उन्होंने बहुत आग्रह किया तो मैंने इस रचना का सम्पादन, प्रूफ-संशोधन, वाक्य-विन्यास, विषय आदि समग्र दृष्टियों से अवलोकन किया है।
इस रचना में 'द्रव्य-गुण-पर्याय' से सम्बन्धित विषय प्रमुखता से लिया गया है - यह मेरा भी प्रिय विषय है; क्योंकि मैंने इसी विषय पर अपना शोधकार्य किया है। ____ इसप्रकार 'द्रव्य-गुण-पर्याय' का विषय अत्यन्त गहन एवं विस्तृत है, फिर भी विद्वान् लेखक ने इसे अत्यन्त सरल एवं सर्वग्राह्य बनाने का प्रयत्न किया है और वे अपने प्रयास में सफल भी हुए हैं। प्रत्येक विषय को प्रस्तुत करने में आगम-प्रमाण, युक्तियाँ, उदाहरण एवं जानने से लाभ आदि बिन्दुओं का समुचित उपयोग किया गया है।
विषय-प्रस्तुतिकरण की दृष्टि से निम्न बिन्दु दृष्टव्य हैं - १. महत्त्वपूर्ण वाक्यों/वाक्यांशों को अधिक काला किया गया है। २. विषय को और अधिक ग्राह्य बनाने की दृष्टि से प्रश्नोत्तर शैली का प्रयोग __ किया गया है, जिससे विषय प्रतिपादन में सरलता हुई है। ३. अनेक स्थलों पर मूल ग्रन्थों को पढ़ने की प्रेरणा भी दी गई है। ४. पुस्तक को अध्यायों में विभाजित करने के साथ-साथ अनेक स्थानों पर
शीर्षक एवं उपशीर्षक भी लगाये गये हैं।
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